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Upma Singh

Navbharat Times

Upma Singh is a journalist with 17 years of experience in the field of entertainment and feature journalism. She has worked with Amar Ujala and Dainik Bhaskar , leading national hindi newspapers before joining Navbharat Times. She is an assistant editor at Navbharat Times, Mumbai.

All reviews by Upma Singh

Image of scene from the film Phule

Phule

History, Drama (Hindi)

महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के प्रेरणादायी जीवन सफर से रूबरू होने के लिए, यह फिल्‍म एक बार जरूर देखनी चाहिए।

Sat, April 26 2025

‘हमारा देश एक भावुक देश है, यहां धर्म और जाति के नाम पर लोगों को लड़ाना बड़ा ही सरल है, यह भविष्य में भी होगा।’ देश के महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की फिल्म ‘फुले’ में की गई यह भविष्यवाणी आज के दौर में और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाती है, जब धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में धर्म के नाम पर कई परिवार उजाड़ दिए जाते हैं। बेटियों की शिक्षा के लिए आज भी ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ मुहिम चलानी पड़ती है और उच्च वर्ग नाराज ना हो जाए, इसलिए फिल्म को सेंसर कर दिया जाता है। ज्योतिबा कहते हैं, ‘बस क्रांति की यह ज्योति जलाए रखना।’ वह क्रांति, जिसका बिगुल उन्होंने 18वीं सदी में फूंका था। फिल्म ‘फुले’ ज्योतिबा के जीवन और विचारों को समर्पित वही क्रांति गीत है, जिसे मेनस्ट्रीम सिनेमा में लाने के लिए मेकर्स की तारीफ बनती है।

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Image of scene from the film Jaat

Jaat

Action, Drama (Hindi)

सनी देओल के स्वैग और एक्शन के फैन हैं तो यह फिल्म आपके लिए है।

Fri, April 11 2025

‘यह ढाई किलो का हाथ जब उठता है ना तो आदमी उठता नहीं, उठ जाता है।’, 32 साल पहले फिल्म ‘दामिनी’ में सनी देओल ने अपने ढाई किलो के हाथ की ताकत दिखाकर नॉर्थ के दर्शकों के दिल लूटा था। अब बॉलीवुड के OG एक्शन स्टार 67 साल की उम्र में ‘जाट’ बनकर वही दमखम दिखाने साउथ के मैदान में उतरे हैं। खास बात यह है कि चेहरे और त्वचा पर इस बढ़ती हुई उम्र का असर दिखने के बावजूद, वह अपने स्वैग, स्टाइल और एक्शन से, अब भी इस बात पर भरोसा दिलाते हैं कि उनका यह ढाई किलो का हाथ दर्जनों गुंडों को अकेले पीट-पीटकर भूसा भर सकता है। चलती जीप रोक सकता है और भारी-भरकम पंखे को उठाकर हवा में उड़ा सकता है। फिल्म ‘जाट’ असल में साउथ इंडियन स्टाइल में 80 के दशक वाले ‘एंग्री यंग मैन’ सनी देओल की वापसी है, जो विशेष रूप से उस किस्म की मसाला फिल्मों के शौकीनों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, जिनमें दिमाग लगाना या लॉजिक ढूढ़ना बेवकूफी होगी।

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Image of scene from the film L2: Empuraan

L2: Empuraan

Action, Crime, Thriller (Malayalam)

भव्यता के फेर में फंस गया ये 'एम्पुरान'

Fri, March 28 2025

मलयालम सिनेमा के जाने-माने ऐक्टर पृथ्वीराज सुकुमारन ने साल 2019 में फिल्म लुसिफर से निर्देशन में कदम रखा था। दिग्गज अभिनेता मोहनलाल की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म ने तब रेकॉर्ड कामयाबी हासिल की थी। फिल्म को सिर्फ केरल ही नहीं, अन्य राज्यों के दर्शकों ने भी खूब पसंद किया था। इसलिए, पृथ्वीराज सुकुमारन अब इसका सीक्वल L2 : एम्पुरान पैन इंडिया लेवल पर पांच भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु और मलयालम में लेकर आए हैं। एम्पुरान का मतलब ही होता है- ऐसा महान राजा, जिसका दर्जा बस भगवान से ही कम हो। लिहाजा, इस बार फिल्म का स्केल भी कहीं ज्यादा बड़ा है। दुनिया के अलग-अलग लोकेशंस पर बड़े-बड़े शॉट्स फिल्म का आकर्षण है। लेकिन इस स्टाइल, भव्यता, चमक-दमक के बीच कहानी कमजोर रह गई है। इस बार कहानी में लुसिफर वाली गहराई और पकड़ नदारद है। कहानी लुसिफर का टैग पाने वाले स्टीफन नेदूंपल्ली उर्फ कुरैशी अब्राम (मोहनलाल) के एम्पुरान यानी और ताकतवर बनने की है। उसकी दुनिया केरल से निकलकर इंटरनैशनल हो चुकी है। अपने दत्तक पिता रामदास (सचिन खेडेकर) के निधन के बाद सत्ता उनके पुत्र जतिन (टोविनो थॉमस) को सौंपकर स्टीफन एक अंतरराष्ट्रीय गैंग के सरगना के रूप में सक्रिय है, मगर यहां भी नशे के खिलाफ उसकी जंग जारी है और वह ड्रग रैकेट चलाने वाले काबूगा गैंग का सफाया करने में जुटा हुआ है। इधर, केरल की राजनीति में अलग उथल-पुथल शुरू हो जाती है। पांच साल मुख्यमंत्री बनने बाद जतिन तरह-तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुका है। यही नहीं, आगामी इलेक्शन के लिए वह अपने पिता की पार्टी छोड़कर सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ाने वाले नेता बाबा बजरंगी (अभिमन्यु सिंह) से हाथ मिलाकर नई पार्टी बना लेता है, जिसके विरोध में उसकी बहन प्रियदर्शिनी (मंजू वॉरियर) खुद राजनीति में उतर जाती है। वहीं, अपने राज्य को बचाने के लिए स्टीफन को भी केरल लौटना पड़ता है। अब स्टीफन की यह घर वापसी क्या गुल खिलाती है, यह जानने लिए सिनेमाघर जाना होगा।

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Image of scene from the film Khakee: The Bengal Chapter

Khakee: The Bengal Chapter

Drama, Crime (Hindi)

क्राइम थ्रिलर के शौकीन हैं, तो इसे देख सकते हैं

Sat, March 22 2025

‘प्रेम कहानी यारों देखी, देवदास की पारो देखी, जर्दा पान का पत्ता देखा, अजब गजब कलकत्ता देखा, किस्सा है गुरदेव का सुर ताल का, एक और रंग भी देखिए बंगाल का’, ये खूबसूरत बोल हैं फिल्ममेकर नीरज पांडे की नई वेब सीरीज ‘खाकी: द बंगाल चैप्टर’ के ओपनिंग ट्रैक के, जो बंगाल का एक अलग रंग दिखाने का दावा करती है। अपनी खाकी फ्रेंचाइजी के तहत बिहार के बाद नीरज पांडे अब इसकी दूसरी कड़ी ‘द बंगाल चैप्टर’ लाए हैं। हालांकि, दावे से उलट कहानी में कोई ऐसा अनूठापन नहीं है। राजनीति, गैंगस्टर और पुलिस के नेक्सस की कहानियां पहले भी कई आ चुकी हैं, लेकिन कोलकाता की गलियों में भागती इस चोर-पुलिस के कहानी में बंगाल की संस्कृति, बोली-बानी और बांग्ला के नामी कलाकारों का समावेश इसे आकर्षक बनाता है। कहानी ‘सिटी ऑफ जॉय’ के ‘सिटी ऑफ भॉय’ बनने की है, जिसे सुधारने का जिम्मा एक ईमानदार और बहादुर खाकीधारी उठाता है। शुरुआत सत्ताधारी पार्टी के एक नेता के पोते की किडनैपिंग से होती है, जिसे खोजने के लिए ईमानदार पुलिस अधिकारी सप्तऋषि सिन्हा (परमव्रत चटर्जी) को एसआईटी में लाया जाता है। सप्तऋषि यहां लोकल डॉन शंकर बरुआ उर्फ बाघा (सास्वत चटर्जी) के आतंक से रूबरू होता है। बाघा अपने दो लड़कों जय-वीरू सागोर तालुकदार (रित्विक भौमिक) और रंजीत ठाकुर (आदिल खान) के साथ मिलकर स्मगलिंग से लेकर दिनदहाड़े किसी का गला रेतने तक, सब कुछ बेखौफ होकर करता है, क्योंकि उसके सिर पर सत्ताधारी पार्टी के ताकतवर नेता बरुन रॉय (प्रोसेनजीत चटर्जी) का हाथ है। चूंकि, इलेक्शन सिर पर है और विपक्ष की नेता निवेदिता बसाक (चित्रांगदा सिंह) शहर के हालात का मुद्दा बनाती है, इसलिए वो सप्तऋषि के जरिए बाघा पर लगाम कसने का दिखावा करते हैं। हालांकि, इस लड़ाई में सप्तऋषि जल्द ही शहीद हो जाते हैं और तब एंट्री होती है, सुपरकॉप अर्जुन मैत्रा (जीत) की। अर्जुन नियमों-निर्देशों को ताख पर रखकर गुनहगारों को सबक सिखाने वाला ऑफिसर है। ऐसे में वह बाघा, सागोर और रंजीत के आतंक से कोलकाता को कैसे भयमुक्त कराता है, यह सीरीज देखकर पता चलेगा।

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Image of scene from the film Kanneda

Kanneda

Crime (Punjabi)

परमीश वर्मा की बढ़िया परफॉर्मेंस के लिए देख सकते हैं।

Sat, March 22 2025

‘कन्नेडा’ वेब सीरीज के नरेटर मोहम्मद जीशान अय्यूब के शब्दों में कहें तो इसे समझने के लिए कनाडा देश को समझना होगा, जहां दो देश बसते हैं। एक गोरों की फर्स्ट वर्ल्ड कंट्री ‘कैनेडा’ और दूसरा थर्ड वर्ल्ड कंट्री से आए प्रवासियों का ‘कन्नेडा’, जिसके निवासियों को सेकंड क्लास सिटीजन समझा जाता था। यह कहानी इसी तबके के एक ऐसे बंदे निर्मल चहल उर्फ निम्मा (परमीश वर्मा) की है, जो कनाडा और कन्नेडा के बीच की इस दूरी को मिटाने के लिए कुछ भी करने पर आमादा हो जाता है। साल 1984 के दंगों के बाद अपना पिंड पंजाब छोड़कर वैंकूवर में बसा निम्मा पढ़ाई, खेलकूद, म्यूजिक हर चीज में अव्वल होता है। स्कूल में वह गोरों के खेल रग्बी में सिलेक्ट होने वाला पहला ब्राउन मुंडा बनता है, मगर गोरे साजिशन उसे ड्रग रखने के जुर्म में फंसाकर टीम से निकाल देते हैं। इसके बाद निम्मे को यकीन हो जाता है कि वह कितनी भी मेहनत कर ले, खुद को सुपीरियर समझने वाले कनाडा वासी उसे वह इज्जत नहीं देंगे। इसलिए वह ताकत और पैसा हासिल करके यह इज्जत कमाने का ठान लेता है।

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Image of scene from the film Nadaaniyan

Nadaaniyan

Romance, Comedy (Hindi)

खाली समय में कुछ और करने या देखने के लिए नहीं है, तो फिल्‍म के नाम पर ऐसी 'नादानियां' देख सकते हैं।

Fri, March 7 2025

कोई 27 साल पहले करण जौहर अपनी पहली फिल्म ‘कुछ कुछ होता है’ लेकर आए थे, जिसमें हिंदुस्तानी बच्‍चे पहली बार ऐसे कॉलेज से रूबरू हुए थे, जहां पढ़ाई के नाम पर टीचर और स्टूडेंट दोनों माइक्रो मिनी स्कर्ट पहनकर ‘प्यार क्या है?’ इस पर गहन विमर्श करते हैं। तब सब यही जानना चाहते थे कि भईया, ये कॉलेज देश में है कहां! क्योंकि हमारे स्कूल में तो प्रेम गीत गाने तक पर टीचर मुर्गा बना देते हैं। खैर, वही करण जौहर अब एक ऐसे अद्भुत स्कूल की कहानी लेकर आए हैं, जहां स्टूडेंट डिबेट टीम के कैप्टन का चुनाव उसकी तर्क क्षमता की बजाय एब्स देखकर बनया जाता है। फिल्म का नाम है- नादानियां, जिसे देखकर यही लगता है कि ऐसी नादानियां मेकर्स को सूझती कैसे है!

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Image of scene from the film Oops! Ab Kya

Oops! Ab Kya

Drama, Comedy, Mystery (Hindi)

अच्छे अभिनय से सजी हल्की-फुल्की मजेदार कहानी

Sat, February 22 2025

सोचिए, एक लड़की जिसने आज के जमाने में शादी से पहले कभी इंटीमेट नहीं होने की कसम ली हो, जिसका बॉयफ्रेंड तीन साल से उस खास दिन का इंतजार कर रहा हो, उसे अचानक पता चले कि वो प्रेग्नेंट है। है ना विचित्र परिस्थिति! पर इसी अजीबो-गरीब सिचुएशन को काफी मजेदार तरीके से हैंडल करती है वेब सीरीज ‘ऊप्स! अब क्या?’, जो मशहूर अमेरिकन टीवी शो ‘जेन द वर्जिन’ का आधिकारिक रीमेक है। इस वेब सीरीज में ड्रामा है, कॉमिडी है, इमोशन है, और तो और मर्डर मिस्ट्री जैसे भरपूर मसाले हैं, जो कभी-कभी अतिरेक भरे लगने के बावजूद आपको बांधे रखते हैं। यह कहानी है रूही (श्वेता बसु प्रसाद) की, जिसने अपनी नानी को वचन दिया है कि वह शादी से पहले कभी फिजिकल रिलेशन नहीं बनाएगी। उसका ओमकार (अभय महाजन) जैसा ग्रीन फ्लैग ब्वॉयफ्रेंड है, जो तीन साल से अपने अरमानों को दबाकर रूही के इस वचन में उसका साथ दे रहा है। लेकिन तभी एक दिन पता चलता है कि रूही प्रेग्नेंट है।

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Image of scene from the film Kaushaljis vs Kaushal

Kaushaljis vs Kaushal

Comedy, Drama, Family (Hindi)

दो पीढ़ियों के बीच आने वाली खाई को भरने और वाई फाई का कनेक्शन

Sat, February 22 2025

हमारे आम मध्यमवर्गीय परिवारों के ज्यादातर माता-पिता बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए अपने सपनों को कुर्बान कर देते हैं। लेकिन वही बच्चे बड़े होकर अपनी ही दुनिया में रम जाते हैं। मां-बाप के लिए उनके पास वक्त ही नहीं बचता और फिर, इन बेचारे बुजुर्गों के पास बचती है टूटे हुए सपनों की किरचें, अकेलापन और उससे उपजी झुंझलाहट। आज के दौर की इसी घर-घर की कहानी का भावुक चित्रण है, फिल्म कौशलजीज वर्सेज कौशल। ये कहानी कन्नौज के कौशल परिवार की है, जिसके मुखिया साहिल कौशल (आशुतोष राणा) कव्वाल बनने के सपने को कुर्बान कर अकाउंटेंट बन जाते हैं, ताकि बच्चों की पढ़ाई का खर्च सही से उठा सकें। वहीं, उनकी पत्नी संगीता (शीबा चड्ढा) ने बच्चों को पूरा समय देने के लिए अपने इत्र बनाने की चाहत दबा दी। पर नोएडा में एक ऐड एजेंसी में नौकरी करने वाले बेटे युग (पवैल गुलाटी) के पास घर आना तो दूर, मां-बाप से बात करने का भी वक्त नहीं रहता। बेटी भी बाहर एनजीओ में काम करती है। ऐसे में, घर में अकेले बचे साहिल और सीमा अपने-अपने सपनों को दोबारा जीने की कोशिश तो करते हैं, मगर एक-दूसरे के मन की बात नहीं समझ पाते। हर वक्त एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं, लिहाजा एक दिन इस कलेश को खत्म करने के लिए दोनों तलाक लेने का फैसला लेते हैं। इधर, युग की गर्लफ्रेंड कियारा (ईशा तलवार) को ऐसा घर चाहिए, जहां सब हंसी-खुशी रहते हों। ऐसे में, मां-बाप के अलग होने के फैसले का बच्चों पर क्या असर पड़ता है? यह फिल्म देखकर पता चलेगा।

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