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Deepak Dua

Independent Film Journalist & Critic

Deepak Dua is a Hindi Film Critic honored with the National Award for Best Film Critic. An independent Film Journalist since 1993, who was associated with Hindi Film Monthly Chitralekha and Filmi Kaliyan for a long time. The review of the film Dangal written by him is being taught in the Hindi textbooks of class 8 and review of the film Poorna in class 7 as a chapter in many schools of the country.

All reviews by Deepak Dua

Image of scene from the film The Signature

The Signature

Family, Drama (Hindi)

संदेश और उपदेश ‘द सिग्नेचर’ में

Sat, October 5 2024

अरविंद और मधु अपनी शादी की 35वीं सालगिरह मनाने विदेश जा रहे हैं। अचानक मधु बीमार होकर वेंटिलेटर पर पहुंच जाती है। अरविंद जैसे-तैसे कर के अस्पताल के लाखों रुपए का बिल भर रहा है। लेकिन मधु के बचने की अब किसी को उम्मीद नहीं है, खुद इनके बेटे को भी नहीं। हर कोई चाहता है कि अरविंद उस फॉर्म पर सिग्नेचर कर दे जिसके बाद मधु का वेंटिलेटर हटा दिया जाएगा। लेकिन अरविंद का सवाल है कि मधु के मरने-न मरने का फैसला मैं क्यों लूं? कुछ अलग-सी कहानी है ‘द सिग्नेचर’ (The Signature) की, संजीदा किस्म की। इस कहानी को लेखक गजेंद्र अहीरे ने फैलाया भी बहुत संजीदगी के साथ है। गजेंद्र के निर्देशन में भी उतनी ही संजीदगी दिखाई देती है। दरअसल यह 2013 में आई गजेंद्र की ही मराठी फिल्म ‘अनुमति’ का हिन्दी रीमेक है जिसमें विक्रम गोखले ने मुख्य भूमिका निभा कर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार पाया था। अब इस हिन्दी फिल्म में उसी भूमिका को अनुपम खेर ने निभाया है।

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Image of scene from the film Auron Mein Kahan Dum Tha

Auron Mein Kahan Dum Tha

Romance, Drama, Action (Hindi)

न कसक न तड़प और कहानी बेदम

Sat, August 3 2024

औरों में कहां दम था जो आज के दौर में भागती-दौड़ती, चटकीली-चमकीली फिल्में परोस रहे बॉलीवुड में ऐसी ठहराव ली हुई, सिंपल-सी प्रेम-कहानी बना सके। सो, यह ज़िम्मा उठाया नीरज पांडेय ने। उन्हीं नीरज पांडेय ने जो ‘ए वैडनसडे’, ‘स्पेशल 26’, ‘बेबी’, ‘अय्यारी’ जैसी फिल्में और ‘स्पेशल ऑप्स’ जैसी वेब-सीरिज़ दे चुके हैं। लेकिन हुआ क्या? कड़ाही पनीर बनाने वाले हाथों को खिचड़ी बनाने का शौक चर्राए तो ज़रूरी नहीं कि उनसे स्वादिष्ट खिचड़ी बन ही जाए। कृष्णा पिछले 22-23 साल से जेल में है। बरसों पहले वह और वसु एक-दूसरे से प्यार करते थे। एक हादसा हुआ और कृष्णा को जेल जाना पड़ा। इधर वह जेल से निकलना नहीं चाहता और उधर वसु उस पल का इंतज़ार कर रही है जब वह जेल से निकलेगा। वसु के पति को भी कृष्णा का इंतज़ार है। वह उस हादसे की रात का सच जानना चाहता है। कृष्णा आता है, वसु से मिलता है, उसके पति से भी मिलता है और उसी रात उन दोनों से दूर भी चला जाता है। कहानी बुरी नहीं है। लेकिन कागज़ पर लिखी अच्छी कहानी भी पर्दे पर तभी अच्छी लगती है जब उसे दमदार तरीके से फैलाया और फिल्माया गया हो। यह फिल्म ‘औरों में कहां दम था’ इसी हादसे का शिकार हुई है। दो लाइनों में सोची गई कहानी को दो पन्नों में फैलाते-फैलाते ही नीरज पांडेय ने न जाने कितने समझौते कर लिए होंगे। फिर यह फिल्म तो सवा दो घंटे से भी ऊपर है जिसे बनाते हुए निर्देशक नीरज पांडेय ने जो समझौते किए, वे भी इसे देखते हुए साफ महसूस होते हैं।

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Image of scene from the film Bad Newz

Bad Newz

Comedy, Romance, Drama (Hindi)

चमकीली, चटकीली ‘बैड न्यूज़’

Fri, July 19 2024

एक लड़की है सयानी-सी। एक दिन एक लड़के से वो मिलती है-बिस्तर में। कुछ देर बाद उसका एक्स-पति आता है। वह उससे भी मिल लेती है-बिस्तर में। अगले महीने आती है यह बैड न्यूज़ कि वह मां बनने वाली है और बच्चे का बाप उन दोनों में से कोई एक नहीं बल्कि दोनों ही हैं। मेडिकल साईंस का यह करिश्मा करोड़ों में एक बार होता है, लेकिन असंभव नहीं है। अब दोनों बापों में ठन जाती है कि बच्चा असल में किसके पास रहेगा। इस ठनाठनी में दोनों बार-बार भिड़ते हैं और उनकी हरकतें देख कर दर्शक हंसते हैं। इस फिल्म की लगभग पूरी कहानी इसके ट्रेलर में खोली जा चुकी है। वैसे भी यह कोई सस्पैंस फिल्म तो है नहीं। सो, ऐसी फिल्मों में कहानी से ज़्यादा कहानी का ट्रीटमैंट देखा जाता है। और चूंकि यह एक अलग किस्म का सब्जैक्ट है-थोड़ा टैबू सा, थोड़ा हटके वाला, तो हमारे फिल्मकार अक्सर ऐसे विषयों पर कॉमेडी का आवरण चढ़ा कर उन्हें परोसते हैं। फिर चाहे वह ‘बधाई हो’ जैसी फिल्म हो या फिर लगभग ऐसी ही ‘गुड न्यूज़’ जिसमें दिखाया गया था कि कृत्रिम गर्भाधान कराने पहुंचे दो जोड़ों में से क्लिनिक वालों की गलती से एक के स्पर्म दूसरे की बीवी को और दूसरे के स्पर्म पहले की बीवी को दे दिए जाते हैं। वह फिल्म हंसते-गुदगुदाते और अंत में इमोशनल करते हुए अपनी बात कह रही थी और इस फिल्म में भी वही तरीका इस्तेमाल किया गया है।

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Image of scene from the film Indian 2

Indian 2

Drama, Action, Thriller (Tamil)

‘हिन्दुस्तानी’ वापस जाओ… गो बैक ‘इंडियन’…

Sat, July 13 2024

आदरणीय हिन्दुस्तानी जी, 1996 की मई में जब आप पहली बार सिनेमा के पर्दे पर तमिल में ‘इंडियन’ और हिन्दी में ‘हिन्दुस्तानी’ बन कर आए थे तो हम दर्शकों ने आपका तहेदिल से स्वागत किया था। उस फिल्म में आप नेता जी की सेना में सिपाही थे लेकिन जब आपने आज़ाद भारत में भ्रष्टाचार का बोलबाला देखा तो आप खुद भ्रष्टाचारियों को सज़ा देने में जुट गए। आपके तरीके गैरकानूनी थे लेकिन हम लोग आपके पक्ष में थे क्योंकि आप वह काम कर रहे थे जो दरअसल सरकार को करना चाहिए था। ‘अपरिचित’ तब तक आई नहीं थी और ‘प्रहार’ के मेजर चव्हाण हमें बता गए थे कि सिपाही का काम है लड़ना, लड़ाई के मैदान भले ही बदल जाएं। उस फिल्म के अंत में अपने भ्रष्ट बेटे को मार कर आप हिन्दुस्तान से गायब होकर सिंगापुर चले गए थे। आखिरी सीन में आप हमें उम्मीद दे गए थे कि आप जल्द लौटेंगे और एक बार फिर से भ्रष्टाचारियों का विनाश करेंगे। लेकिन आपने लौटने में 28 बरस लगा दिए, क्यों…?

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Image of scene from the film Chandu Champion

Chandu Champion

Drama (Hindi)

जिएगा और जीतेगा ‘चंदू चैंपियन’

Fri, June 14 2024

मुरली का बचपन से एक ही सपना था कि ओलंपिक में जाना है, गोल्ड मैडल लेकर आना है। बड़ा होकर वह फौज में गया तो बॉक्सिंग के ज़रिए अपने इस सपने को सच करने में जुट गया। लेकिन 1965 की जंग में उसे इतनी गोलियां लगीं कि वह अपने पैरों से लाचार हो गया। मगर उसने हार नहीं मानी और स्विमिंग करने लगा। 1972 में हुए पैरालंपिक (दिव्यांगजनों के ओलंपिक) में तैराकी में गोल्ड मैडल लेकर आया। यह एक सच्ची कहानी है और ‘चंदू चैंपियन’ (Chandu Champion) इसी कहानी पर बनी है। आप चाहें तो पूछ सकते हैं कि यदि यह सच्ची कहानी है तो इतने बरसों से हमने इसके बारे में कहीं पढ़ा या सुना क्यों नहीं? जवाब वही पुराना है कि हमारे समाज के नायकों और उनकी प्रेरक कहानियों के प्रति हमारे समाज के कर्णधारों का उदासीन रवैया इसका मुख्य कारण है। मुरलीकांत पेटकर भी ऐसे ही एक नायक थे जिन्हें न तो उचित पुरस्कार मिले, न ही सम्मान और वक्त की आंधी ने उन्हें हाशिये पर कर डाला। लेकिन पिछले कुछ सालों में जब सरकार ने ढूंढ-ढूंढ कर ऐसे नायकों को सम्मानित करना शुरू किया तो उनकी कहानी भी सामने आई और 2018 में उन्हें पद्मश्री देकर सम्मानित किया गया। उसके बाद लोगों का ध्यान उन पर गया और नतीजे के तौर पर यह फिल्म बन कर आई है।

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