
Deepak Dua
Independent Film Journalist & Critic
Deepak Dua is a Hindi Film Critic honored with the National Award for Best Film Critic. An independent Film Journalist since 1993, who was associated with Hindi Film Monthly Chitralekha and Filmi Kaliyan for a long time. The review of the film Dangal written by him is being taught in the Hindi textbooks of class 8 and review of the film Poorna in class 7 as a chapter in many schools of the country.
All reviews by Deepak Dua

Dilli Dark
Drama (Hindi)
दिल्ली की जुदा सूरत दिखाती ‘दिल्ली डार्क’
Thu, May 29 2025
‘यह अंधेर नगरी है, यहां गलत रास्ता ही मेन रोड है।’ इस फिल्म (Dilli Dark) का एक पगला किरदार दिल्ली के बारे में जब यह बात कहता है तो लगता है कि इस शहर के बारे में इससे ज़्यादा सयानी बात भला और क्या हो सकती है। दिल्ली-नक्शे पर एक शहर लेकिन इतिहास के पन्नों में एक ऐसी जगह जो जितनी बार उजड़ी, अगली बार उससे ज़्यादा शिद्दत के साथ बसी। एक ऐसी जगह जहां कभी पांडवों ने राज किया तो कभी बाहरी आक्रमणकारी जाते-जाते अपने गुलामों को गद्दी सौंप गए। वही गुलाम वंश जिसमें रज़िया जैसी सुलतान हुई और वही रज़िया जिसने अफ्रीका से आए अपने गुलाम याक़ूत से मोहब्बत की। आज बरसों बाद एक और अफ्रीकी युवक दिल्ली में रह रहा है। माइकल ओकेके (ओके ओके नहीं ओकेके) एक आम लड़का है जिसे हिन्दी समझ में आती है और वह ‘तोड़ा-तोड़ा’ बोल भी लेता है। वह दिल्ली वाला है, दिल्ली वाला बन कर यहीं रहना भी चाहता है। दिन में एम.बी.ए. करता है, लेकिन रात में मजबूरन उसे ड्रग्स बेचनी पड़ती हैं। पंजाबी मकान मालिक की लड़की को देखता है, पड़ोसी बंगाली से दोस्ती करता है, एक धर्मगुरु मानसी उर्फ ‘मां’ के नज़दीक पहुंचता है लेकिन पाता है कि इस शहर में हर कोई बस अपने लिए जीता है।

American Manhunt - Osama bin Laden
Documentary (English)
देखिए ओसामा बिन लादेन को पकड़ने की कवायद
Sun, May 25 2025
नेटफ्लिक्स पर ‘अमेरिकन मैनहंट’ के तहत ऐसी कई डॉक्यूमैंट्री हैं जिनमें अमेरिका द्वारा समय-समय पर किए गए ‘मैनहंट’ यानी किसी अपराधी, आतंकवादी, कातिल की तलाश से जुड़ी जानकारी साझा की गई है। उसी कतार में ‘अमेरिकन मैनहंट-ओसामा बिन लादेन’ नाम की यह तीन एपिसोड की डॉक्यूमैंट्री आई है जो बताती है कि अमेरिका के इतिहास में 11 सितंबर, 2001 को उस पर हुए सबसे घातक हमले से पहले भी अमेरिका ओसामा को पकड़ना चाहता था लेकिन इस हमले के बाद तो जैसे अमेरिकी खुफिया विभाग रात-दिन उसके पीछे लगा रहा और आखिर दस साल लंबे इंतज़ार और कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने उसे एक रात पाकिस्तान के एबटाबाद में उसके घर में मार गिराया और उसकी लाश को समुंदर की गहराइयों में फेंक दिया ताकि कल को कोई उसका मकबरा बना कर वहां सजदा न करने लगे। बड़े विस्तार से यह डॉक्यूमैंट्री अमेरिकी खुफिया विभाग के लोगों, सैन्य अफसरों व उन लोगों से मिलवाती है जिन्होंने फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए दस साल लंबा समय लगा कर यह पाया कि ओसामा कहां है, उसे कैसे घेरा और गिराया जाएगा।

Bhool Chuk Maaf
Comedy, Romance, Science Fiction (Hindi)
लप्पूझन्ना फिल्म है ‘भूल चूक माफ’
Fri, May 23 2025
फिल्म के पहले सीन में लड़का-लड़की घर छोड़ कर भाग रहे हैं। लड़का 25 की उम्र में ‘कुछ नहीं’ करता है। बाद में पता चलता है कि ‘कुछ नहीं’ करना उसका खानदानी काम है क्योंकि उसके पिता भी ‘कुछ नहीं’ करते हैं और उसका एक मामा भी अपनी बहन के घर में ‘कुछ नहीं’ करता है। यानी यह लड़का दिमाग से पैदल यानी डंब है क्योंकि लड़की को वह कहां ले जाएगा, कैसे रखेगा, यह उसे नहीं पता। अचानक से लड़की को ख्याल आता है कि उसके यूं भागने से कहीं उसके पिता खुदकुशी न कर लें सो वह गाड़ी घुमाने को कहती है। यानी यह ‘पापा की परी’ भी दिमाग से डंब है। एक डंब लड़की ही किसी 25 साल के बेरोज़गार लड़के के साथ शादी करने के इरादे से घर से भाग सकती है। एक बात और-इन दोनों डंब लोगों में प्यार कैसे हुआ और क्यों टिका हुआ है, यह पूरी फिल्म में न तो बताया गया, न दिखाया गया और न ही महसूस करवाया गया। खैर, थोड़ी ही देर में हमें पता चलता है कि इन दोनों के घरवाले भी इनकी तरह डंब हैं क्योंकि लड़की का बाप ‘एक महीने में सरकारी नौकरी ले आओ, मेरी लड़की ले जाओ’ जैसी डंब शर्त रखता है जिसे उसकी डंब लड़की बढ़वा कर दो महीने करवा देती है। मोहलत का वक्त निकलने के बाद जिस लड़के से वह अपनी लड़की का विवाह करवाने को तैयार होता है, उसकी डंब हरकतें देख कर लगता है कि यह बाप है या लप्पूझन्ना…!

Mission: Impossible - The Final Reckoning
Action, Adventure, Thriller (English)
दुनिया के वजूद को बचाने का आखिरी ‘मिशन इम्पॉसिबल’
Mon, May 19 2025
ज़रा सोचिए कि जिस ए.आई. यानी आर्टिफिशल इंटेलीजेंस (कृत्रिम बुद्धिमता) को इंसान ने अपनी मदद के लिए बनाया उस ए.आई. की ही नीयत खराब हो जाए और वह इंसानों को अपने इशारों पर नचाने लगे तो…? 2023 में आई ‘मिशन इम्पॉसिबल’ सीरिज़ की 7वीं फिल्म में आई.एम.एफ. यानी इम्पॉसिबल मिशन फोर्स के जाबांज़ एजेंट ईथन हंट ने ए.आई. को काबू में करने वाली चाबी हासिल कर ली थी जो पता नहीं कहां लगेगी। अब इस कड़ी की 8वीं और आखिरी फिल्म ‘मिशन इम्पॉसिबल-द फाइनल रेकनिंग’ में ए.आई., जिसे ‘एन्टिटी’ या ‘वजूद’ कहा गया है, धीरे-धीरे दुनिया के परमाणु शक्तिसंपन्न देशों पर कब्जा कर रहा है। ऐसे नौ देशों पर कब्जा होते ही वह दुनिया को तबाह कर देगा। उसे रोकने का एक ही तरीका है कि समुद्र की गहराइयों में दफन एक पनडुब्बी में वह चाबी लगा कर एक ड्राइव हासिल की जाए। विलेन गैब्रियल चाहता है कि ईथन उसे वह ड्राइव लाकर दे ताकि वह ‘वजूद’ पर अधिकार कर सके। इस बीच ईथन के साथी लूथर ने एक वायरस बनाया है जिसे लगाते ही ‘वजूद’ निष्क्रिय हो जाएगा लेकिन गैब्रियल उसे ले जाता है। अब ईथन और उसकी टीम को पहले पनडुब्बी का पता लगाना है, उसमें से ड्राइव लेनी है, गैब्रियल से वह वायरस लेना है, उसे ‘वजूद’ में लगाना है, सारा डाटा उसमें लेना है और सैकिंड के सौवें हिस्से में उसे निकालना है। इस सारे काम के लिए इनके सिर्फ पास तीन-चार दिन हैं नहीं तो सब तबाह हो जाएगा।

Naale Rajaa Koli Majaa
Drama, Comedy, Family (Kannada)
चिकन करी का मज़ा ‘नाले रजा कोली मजा’
Sun, May 11 2025
2021 में अपनी कन्नड़ फिल्म ‘कोली ताल’ (चिकन करी) लाकर तारीफें पाने वाले फिल्मकार अभिलाष शैट्टी अब उसी कतार में ‘नाले रजा कोली मजा’ (संडे स्पेशल) नाम की यह फिल्म लेकर आए हैं। स्नेहा के घर में हर संडे को चिकन बनता है। पूरे हफ्ते उसे इस दिन का इंतज़ार रहता है। लेकिन इस संडे को है गांधी जयंती और इस दिन चिकन की दुकानें बंद रहती हैं। अब स्नेहा को तो चिकन खाना ही खाना है। अब शुरू होती है चिकन की तलाश जो उसे एक दिलचस्प सफर पर ले जाती है। महज़ दो दिन की इस छोटी-सी कहानी को लेखक-निर्देशक अभिलाष ने रोचकता से फैलाया है और अंत में सार्थकता से समेटा भी है। बतौर लेखक वह यह संदेश दे पाने में सफल रहे हैं कि इंसान की खाने-पीने की अपनी-अपनी चॉयस होती है और किसी दूसरे को इस आधार पर उसे जज करने का कोई अधिकार नहीं है। अभिलाष के निर्देशन में परिपक्वता है और पूरी फिल्म में वह कसावट बनाए रखते हैं। यह फिल्म मनोरंजक है, दिलचस्प है और प्यारी भी।

Gram Chikitsalay
Comedy, Drama (Hindi)
झोला छाप लिखाई ‘ग्राम चिकित्सालय’ की
Fri, May 9 2025
‘थायराइड जैसा लग रहा है। आपको पांच दिन का दवा देते हैं, अगर ठीक हो गया तो समझिए थायराइड ही था, नहीं तो फिर सोचेंगे।’ अमेज़न प्राइम पर आई इस वेब-सीरिज़ ‘ग्राम चिकित्सालय’ का एक झोला छाप डॉक्टर जब एक मरीज से यह कहता है तो लगता है कि इस सीरिज़ को बनाने वाले भी हमसे यही कहना चाहते हैं कि यह वाली सीरिज़ हमारी ही बनाई ‘पंचायत’ जैसी लग रही हैं। पांच एपिसोड देखिए, पसंद आई तो ठीक, नहीं तो फिर सोचेंगे।’ ‘ग्राम चिकित्सालय’ का ट्रेलर देखिए तो आप एकदम से गमक उठेंगे कि वाह, यह तो ‘पंचायत’ जैसी है। वही स्वाद, वही खुशबू तो ज़ाहिर है कि मज़ा भी वैसा ही होगा। लेकिन ऐसा है नहीं। यूं इस सीरिज़ की कहानी का ढांचा ‘पंचायत’ सरीखा ही है। वहां गांव में नए पंचायत सचिव आए थे, यहां गांव के ग्राम चिकित्सालय में नए डॉक्टर साहब आए हैं। चिकित्सालय में कम्पाउंडर है, वॉर्ड बॉय है, नर्स है, स्वीपर भी है। बस नहीं है तो चिकित्सालय में जाने का रास्ता और न ही कोई मरीज़। चिकित्सालय के स्टाफ समेत पूरे गांव को भरोसा है कि यह वाला डॉक्टर भी यहां दो दिन से ज़्यादा नहीं टिकेगा। लेकिन दिल्ली से आए डॉक्टर प्रभात के इरादे कुछ और ही हैं।

Jai Mata Ji Let's Rock
Comedy, Family, Drama (Gujarati)
मज़ा, मस्ती, मैसेज ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में
Fri, May 9 2025
सरकार ने ऐलान किया है कि 80 साल से ऊपर के हर बुजुर्ग को हर महीने एक लाख रुपए की पेंशन मिलेगी। अब अचानक से सब लोगों के भीतर वृद्धों के प्रति प्रेम जाग गया है। अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ आए लोग अब विनती करके उन्हें वापस ला रहे हैं। जो कमल और गुलाब अपनी मां को पास नहीं रखना चाहते थे, अब उन्हें अपने-अपने पास रखने के लिए लड़ रहे हैं। दोनों बहुओं में तकरार हो रही है कि सास की ज़्यादा सेवा कौन करेगा। लेकिन सासू बा भी गजब हैं। इस नई पारी के खुल कर मज़े ले रही हैं। और तभी आता है एक ट्विस्ट…! मनोरंजन के रैपर में लपेट कर मैसेज देने वाले लेखक-निर्देशक मनीष सैनी अपनी दो गुजराती फिल्मों ‘ढ’ और ‘गांधी एंड कंपनी’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके हैं। अब अपनी इस अगली गुजराती फिल्म ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में भी वह तारीफें पाने लायक काम करते दिखे हैं।

Raid 2
Drama, Crime (Hindi)
अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’
Thu, May 1 2025
कोई फिल्म आकर दिल-दिमाग में जगह बना ले तो मन करता है कि इस जैसी और कहानियां भी आएं ताकि सिनेमा दर्शकों को न सिर्फ मनोरंजन देता रहे बल्कि उन्हें मसालों में लिपटे पलायनवादी सिनेमा से परे ऐसी कहानियां भी परोसे जो हमें खुद से मिलवाती हैं। सात साल पहले जब राजकुमार गुप्ता के निर्देशन में अजय देवगन वाली ‘रेड’ आई थी तो यही उम्मीद जगी थी कि अपने देश में तो इन्कम टैक्स वालों के हैरतअंगेज़ छापों की ढेरों मिसालें हैं सो बहुत जल्द किसी न किसी रेड की कहानी पर्दे पर आ ही जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब सात साल बाद ‘रेड 2’ आई तो मन में अरमान जगे कि ज़रूर इन लोगों के हाथ फिर कोई ज़बर्दस्त कहानी लगी होगी वरना ये लोग इतनी देर नहीं लगाते। मगर क्या ‘रेड 2’ उन अरमानों को पूरा कर पाती है? आइए जानते हैं कि क्या इस फिल्म में वह बात है जो ‘रेड’ में थी, जिसे देख कर मैंने लिखा था कि ऐसी ‘रेड’ ज़रूर पड़े, बार-बार पड़े।
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