
Deepak Dua
Independent Film Journalist & Critic
Deepak Dua is a Hindi Film Critic honored with the National Award for Best Film Critic. An independent Film Journalist since 1993, who was associated with Hindi Film Monthly Chitralekha and Filmi Kaliyan for a long time. The review of the film Dangal written by him is being taught in the Hindi textbooks of class 8 and review of the film Poorna in class 7 as a chapter in many schools of the country.
All reviews by Deepak Dua

Jolly LLB 3
Drama, Comedy (Hindi)
‘म्हारी ज़मीन म्हारी मर्ज़ी’ की बात करती ‘जॉली एल.एल.बी. 3’
Sat, September 20 2025
लेखक-निर्देशक सुभाष कपूर ने 2013 में आई ‘जॉली एल.एल.बी.’ में एक हिट एंड रन केस के बहाने से सिस्टम की खामियों पर बात की थी। उस फिल्म के रिव्यू में मैंने लिखा था कि जब आप के हाथ में हथौड़ा हो तो चोट भी ज़ोरदार करनी चाहिए। यह चोट उन्होंने 2017 में आई ‘जॉली एल.एल.बी. 2’ में एक फेक एनकाऊंटर के बहाने से सचमुच बड़े ही ज़ोरदार ढंग से की थी। इस फिल्म को मैंने एक ‘करारा कनपुरिया कनटॉप’ बताया था। अब इस तीसरी वाली ‘जॉली एल.एल.बी. 3’ में सुभाष कपूर ने अपने पंखों को फैलाया है और विकास के नाम पर आम लोगों के साथ होने वाली संगठित धोखाधड़ी को दिखाने का प्रयास किया है। यह कहानी है राजस्थान के परसौल नाम के एक ऐसे गांव की जहां एक बड़ा प्रोजेक्ट बनाने के लिए एक बिज़नेस ग्रुप किसानों से ज़मीन खरीद रहा है। इस काम में स्थानीय नेताओं से लेकर प्रशासन तक उसका मददगार है। कुछ ने ज़मीन अपनी मर्ज़ी से बेची तो किसी की हथिया ली गई। जिसने विरोध किया उसकी आवाज़ दबा दी गई। ऐसे ही एक किसान की खुदकुशी के बाद उसकी विधवा ने दिल्ली की अदालत में दस्तक दी जहां उसे मिले वकील जगदीश त्यागी उर्फ जॉली और जगदीश्वर मिश्रा उर्फ जॉली। इन दो जॉलियों और उस पूंजीपति की तिकड़मों की भिड़ंत के बहाने से यह फिल्म हमें ‘विकास’ के नाम पर होने वाली साज़िशों और सिस्टम की चालों को न सिर्फ करीब से दिखाती है बल्कि उन पर करारी टिप्पणियां करते हुए एक बार फिर उस उम्मीद को ज़िंदा रखती है कि अभी भी हमारे चारों तरफ सब कुछ मरा नहीं है।

Inspector Zende
Comedy, Drama (Hindi)
झंडू फिल्म बना दी ‘इंस्पैक्टर झेंडे’
Sun, September 7 2025
70 के दशक में ‘बिकनी किलर’ के नाम से मशहूर हुए और दिल्ली की तिहाड़ जेल से कैदियों व स्टाफ को नशीला खाना खिला कर फरार हुए कुख्यात अपराधी चार्ल्स शोभराज पर दुनिया भर में किताबें लिखी गईं और उसकी कहानी को सिनेमा में भी उतारा गया। तो नेटफ्लिक्स पर आई इस फिल्म में नया क्या हो सकता है? जवाब है-यह फिल्म चार्ल्स की बजाय मुंबई पुलिस के उन इंस्पैक्टर मधुकर झेंडे के बारे में है जिन्होंने चार्ल्स को पहले 1971 में पकड़ा था और फिर 1986 में उसके तिहाड़ से भागने के बाद गोआ से। चूंकि चार्ल्स ने अपनी कहानी के अधिकार यहां-वहां बेचे हुए हैं इसलिए इस फिल्म में सिर्फ इंस्पैक्टर झेंडे का नाम असली है और बाकी सब के नाम, काम बदल दिए गए हैं। मसलन चार्ल्स शोभराज यहां कार्ल भोजराज है, ‘बिकनी किलर’ की बजाय ‘स्विमसूट किलर’ है, नशीले खाने की बजाय नशीली खीर है, वगैरह-वगैरह…! लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है, कहानी मज़ेदार होनी चाहिए, काल्पनिक हो या वास्तविक। और बस, यहीं आकर यह फिल्म मात खा गई है क्योंकि इसे ‘मज़ेदार’ बनाने के लिए जो रंग-ढंग चुने गए हैं उससे यह हल्की, कमज़ोर और उथली हुई है।

The Bengal Files
Drama, History, Thriller (Hindi)
मत देखिए ‘द बंगाल फाइल्स’
Sat, September 6 2025
‘प्रहार’ में मेजर चव्हाण बने नाना पाटेकर कोर्ट से पूछते हैं-‘देश का मतलब क्या है? सड़कें, इमारतें, खेत-खलिहान, नदियां, पहाड़, बस इतना ही? और लोग, लोग कहां हैं?’ सच तो यह है कि देश की बात करते समय हुकूमतों ने कभी लोगों के बारे में सोचा ही नहीं। विवेक रंजन अग्निहोत्री की यह फिल्म ‘द बंगाल फाइल्स’ उन्हीं लोगों, हम लोगों, ‘वी द पीपल ऑफ भारत’ की बात कहने आई है, सुनाने आई है। पर क्या सचमुच कोई ‘वी द पीपल’ की बात सुनना भी चाहता है? समझना चाहता है? आज के पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक दलित लड़की के गायब होने के मामले की तफ्तीश करने के लिए दिल्ली से सी.बी.आई. अफसर शिवा पंडित को भेजा जाता है। शक स्थानीय विधायक सरदार हुसैनी पर है। शिवा पर वहां हमला होता है क्योंकि उस इलाके में पुलिस की नहीं सरदार हुसैनी की चलती है। वही सरदार हुसैनी जो सीमा पार से अवैध लोगों को वहां लाकर बसा रहा है, उन्हें यहां का नागरिक बना कर उस इलाके की डेमोग्राफी बदल रहा है, हर चीज़ को हिन्दू-मुसलमान बना रहा है ताकि उसकी हुकूमत चलती रहे। तफ्तीश के दौरान शिवा को भारती बैनर्जी मिलती है जिसने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी, अगस्त 1946 का बंगाल का वह ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ देखा था जिसमें हज़ारों लोग मारे गए थे, नोआखाली के दंगे देखे थे और जो आज भी बात-बात पर बीते दिनों की उन भयानक यादों में खो जाती है। शिवा पंडित पाता है कि हालात आज भी कमोबेश वैसे ही हैं। हुकूमत में बैठे लोग आज भी अपने स्वार्थ के लिए ‘वी द पीपल’ को इस्तेमाल ही कर रहे हैं।

Baaghi 4
Action, Thriller (Hindi)
चीज़ी स्लीज़ी क्वीज़ी ‘बागी 4’
Fri, September 5 2025
पहली वाली ‘बागी’ 2016 में, ‘बागी 2’ 2018 में और ‘बागी 3’ 2020 में रिलीज़ हुई थी। पहली वाली को छोड़ कर बाकी दोनों में जो कचरा मनोरंजन परोसा गया था उसके बाद मुमकिन है कि प्रोड्यूसर साजिद नाडियाडवाला को लगा हो कि अब की बार कोई बढ़िया कहानी तलाशेंगे। यही कारण है कि पिछली वाली फिल्म के करीब साढ़े पांच साल बाद अब ‘बागी 4’ आई है जिसकी कहानी और स्क्रिप्ट का श्रेय निर्माता साजिद नाडियाडवाला ने खुद को दिया है। तो आइए, ठीकरा उन्हीं के सिर फोड़ते हैं। पहले सीन में एक एक्सीडैंट में रॉनी बुरी तरह घायल हो जाता है। कई महीनों बाद होश में आने पर उसे अपनी गर्लफ्रैंड अलीशा याद आती है। लेकिन हर कोई उससे कहता है कि अलीशा नाम की कोई लड़की कभी थी ही नहीं और यह सिर्फ उसका दिमागी भ्रम है। न कहीं कोई तस्वीर, न नाम, न पहचान…! तो क्या सचमुच अलीशा नहीं थी…? और अगर थी तो कहां गई…? गई या छुपा ली गई…? कौन है जो ऐसा कर रहा है…? क्यों कर रहा है वह ऐसा…? या सचमुच रॉनी को भ्रम हो रहे हैं…?

Param Sundari
Romance, Drama, Comedy (Hindi)
स्लीपिंग ब्यूटी ‘परम सुंदरी’
Fri, August 29 2025
दिल्ली का पंजाबी लड़का परम सचदेव जा पहुंचा है केरल के एक गांव में वहां की लड़की सुंदरी को पटाने। उसे लगता है कि यही उसकी जीवन संगिनी बनेगी। धीरे-धीरे दोनों करीब आते हैं लेकिन वह लव-स्टोरी ही क्या जिसमें मुश्किलें और अड़चनें न हों और वे लवर ही क्या जो हर बाधा को पार न कर पाएं। दो अलग-अलग माहौल से आए लड़के-लड़की की प्रेम-कहानी देखना नया या अनोखा नहीं है। ऐसी कहानियों में दो जुदा संस्कृतियों, रीति-रिवाजों, परंपराओं आदि के पहले टकराने और फिर एकाकार होने की बातें दर्शकों को लुभाती हैं। ‘चैन्नई एक्सप्रैस’, ‘2 स्टेट्स’, ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ जैसी फिल्मों में हम ये चीज़ें देख चुके हैं, आनंदित हो चुके हैं। लेकिन क्या ‘परम सुंदरी’ भी ऐसा कर पाने में कामयाब रही है? जवाब है-नहीं, बिल्कुल भी नहीं। पहला लक्षण-इस फिल्म को बनाने वालों की सोच स्पष्ट होती तो वे लोग अपनी बुनी हुई कहानी को एक कायदे का नाम ज़रूर देते। जान-बूझ कर लड़के का नाम परम और लड़की का सुंदरी रखा गया है ताकि ‘परम सुंदरी’ शीर्षक से दर्शकों को खींचा जा सके। चलिए, नाम में क्या रखा है, कहानी दमदार होनी चाहिए। यहां वह भी नहीं है। लड़का जिस वजह से केरल गया है, वह रोचक लगता है लेकिन जल्द ही वह कारण अपना असर छोड़ देता है। जिस तरह से इस कहानी को विस्तार देकर स्क्रिप्ट में बदला गया है, उससे इसका बनावटीपन साफ झलकता है। बनाने वालों ने इसे रॉम-कॉम यानी रोमांटिक-कॉमेडी का रूप देना चाहा है लेकिन सच तो यह है कि इस फिल्म में दिखाया गया रोमांस सिर्फ आंखों को भाता है, दिल को नहीं। रही कॉमेडी, तो वह न दिल को जंचती है, न दिमाग को, बल्कि उसे देख-सुन कर झल्लाहट ज़रूर होती है।

Songs of Paradise
Music, Drama, Family (Hindi)
बंदिशों के गीत सुनाती ‘सांग्स ऑफ पैराडाइज़’
Fri, August 29 2025
पचास के दशक का कश्मीर। गीत-संगीत में पुरुषों का वर्चस्व। औरतें गाती भी हैं तो पर्दे में, बंद कमरों में। ऐसे में ज़ेबा को मास्टर जी ने गाना सिखाया, प्रेरित किया, रेडियो तक पहुंचाया। ज़माने से छुपने को ज़ेबा ने नूर बेगम नाम रखा और चल पड़ी इस रास्ते पर। कई मुश्किलें आईं, कई अड़चनें, लेकिन वह थमी नहीं और कश्मीर की पहली मैलोडी क्वीन कहलाई। इससे भी बढ़ कर उसने कश्मीर की लड़कियों को गीत-संगीत के रास्ते पर चलने को प्रेरित किया। यह फिल्म असल में राज बेगम नाम की कश्मीरी गायिका के जीवन से प्रेरित है जिन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड और पद्म श्री भी मिला। लेखक-निर्देशक दानिश रेंज़ू इससे पहले कश्मीर की अभागी औरतों पर ‘हॉफ विडो’ नाम से एक फिल्म बना चुके हैं। ‘सांग्स ऑफ पैराडाइज़’ में उन्होंने हालांकि ज़िक्र ‘कश्मीर की औरतों’ का किया है लेकिन दिखाया सिर्फ ‘कश्मीर की मुस्लिम औरतों’ को है। पचास के दशक में क्या कश्मीर में मुस्लिमों के अलावा बाकी लोग नहीं थे? फिल्म यह भी बताती है कि किसी समय ऋषि-मुनियों की और बाद में सूफी संगीत की धरती कहे जाने वाले कश्मीर में काफी पहले ही कट्टरपंथियों का ऐसा बोलबाला हो चुका था कि वे गाने-बजाने वाली किसी लड़की को अपने मुआशरे में सहन तक नहीं कर पा रहे थे। हालांकि लेखक-निर्देशक ने बहुत चतुराई से ऐसी बातें उभारे बिना सिर्फ नूर बेगम की ही कहानी पर ही अपना फोकस रखा है। लेकिन नूर की कहानी भी उन्होंने बहुत ‘सूखे’ तरीके से दिखाई है।

War 2
Action, Adventure, Thriller (Hindi)
एक्शन मस्त कहानी पस्त
Fri, August 15 2025
करीब छह बरस पहले जब सिद्धार्थ आनंद के निर्देशन में हृतिक रोशन और टाइगर श्रॉफ वाली फिल्म ‘वॉर’ आई थी तो मैंने उसके रिव्यू में लिखा था-‘‘यह फिल्म पूरी तरह से पैसा वसूल एंटरटेनमैंट परोसती है। इसे ‘जानदार’ या ‘शानदार’ से ज़्यादा इसके ‘मज़ेदार’ होने के लिए देखा जाना चाहिए।’’ दरअसल इस किस्म की फिल्में दर्शक को एक ऐसे आभासी संसार में ले जाती हैं जिनके बारे में हमें पता होता है कि इसमें जो दिखाया जा रहा है वैसा न हुआ है, न हो सकता है। लेकिन पर्दे पर दिख रहे इस संसार की रंगीनियां, मस्ती, चमक-दमक और रफ्तार हमें ‘मज़ेदार’ लगती हैं और हम कुछ घंटों के लिए उनमें खो-से जाते हैं। सस्पैंस, रोमांच, एक्शन और आंखों को भाने वाले दृश्यों का जो आभामंडल इस किस्म की फिल्में रचती हैं, वह हमें लुभाता है और ‘बॉलीवुड’ इन्हीं मसालों को हमें बार-बार परोस कर हमें खुश और खुद को अमीर बनाता है। लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि इन मसालों की खुशबू और क्वालिटी उतनी दमदार नहीं बन पाती कि हमारे दिल में गहरे उतर सके। ‘वॉर 2’ में यही हुआ है।

Dhadak 2
Romance, Drama (Hindi)
नीले चश्मे से देखिए ‘धड़क 2’
Sat, August 2 2025
‘‘ऊंची जात की अमीर लड़की। नीची जात का गरीब लड़का। आकर्षित हुए, पहले दोस्ती, फिर प्यार कर बैठे। घर वाले आड़े आए तो दोनों भाग गए। जिंदगी की कड़वाहट को करीब से देखा, सहा और धीरे-धीरे सब पटरी पर आ गया। लेकिन…!’’ यह कहानी थी 2018 में आई ‘धड़क’ की जो मराठी की ‘सैराट’ का रीमेक थी। लेकिन वह रीमेक भी ईमानदार नहीं था क्योंकि ‘धड़क’ बड़ी ही आसानी से अमीर-गरीब या ऊंच-नीच वाले विषय पर ठोस बात कह सकती थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं था और वह फिल्म एक ऐसा आम, साधारण प्रॉडक्ट ही बन कर रह गई थी। ‘धड़क 2’ भी रीमेक है। इस बार 2018 में आई निर्माता पा. रंजीत की एक तमिल फिल्म को चुना गया है। पा. रंजीत अपनी फिल्मों में दलित विमर्श को उठाने के लिए जाने जाते हैं। यह फिल्म भी वही करने की ‘कोशिश’ करती है। लेकिन यह कोशिश सतही है और उथली भी क्योंकि इसमें ‘विमर्श’ की बजाय विचारों की जबरन थोपा-थोपी ज़्यादा दिखाई गई है।
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