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Deepak Dua

Independent Film Journalist & Critic

Deepak Dua is a Hindi Film Critic honored with the National Award for Best Film Critic. An independent Film Journalist since 1993, who was associated with Hindi Film Monthly Chitralekha and Filmi Kaliyan for a long time. The review of the film Dangal written by him is being taught in the Hindi textbooks of class 8 and review of the film Poorna in class 7 as a chapter in many schools of the country.

All reviews by Deepak Dua

Image of scene from the film Naale Rajaa Koli Majaa

Naale Rajaa Koli Majaa

Drama, Comedy, Family (Kannada)

चिकन करी का मज़ा ‘नाले रजा कोली मजा’

Sun, May 11 2025

2021 में अपनी कन्नड़ फिल्म ‘कोली ताल’ (चिकन करी) लाकर तारीफें पाने वाले फिल्मकार अभिलाष शैट्टी अब उसी कतार में ‘नाले रजा कोली मजा’ (संडे स्पेशल) नाम की यह फिल्म लेकर आए हैं। स्नेहा के घर में हर संडे को चिकन बनता है। पूरे हफ्ते उसे इस दिन का इंतज़ार रहता है। लेकिन इस संडे को है गांधी जयंती और इस दिन चिकन की दुकानें बंद रहती हैं। अब स्नेहा को तो चिकन खाना ही खाना है। अब शुरू होती है चिकन की तलाश जो उसे एक दिलचस्प सफर पर ले जाती है। महज़ दो दिन की इस छोटी-सी कहानी को लेखक-निर्देशक अभिलाष ने रोचकता से फैलाया है और अंत में सार्थकता से समेटा भी है। बतौर लेखक वह यह संदेश दे पाने में सफल रहे हैं कि इंसान की खाने-पीने की अपनी-अपनी चॉयस होती है और किसी दूसरे को इस आधार पर उसे जज करने का कोई अधिकार नहीं है। अभिलाष के निर्देशन में परिपक्वता है और पूरी फिल्म में वह कसावट बनाए रखते हैं। यह फिल्म मनोरंजक है, दिलचस्प है और प्यारी भी।

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Image of scene from the film Gram Chikitsalay

Gram Chikitsalay

Comedy, Drama (Hindi)

झोला छाप लिखाई ‘ग्राम चिकित्सालय’ की

Fri, May 9 2025

‘थायराइड जैसा लग रहा है। आपको पांच दिन का दवा देते हैं, अगर ठीक हो गया तो समझिए थायराइड ही था, नहीं तो फिर सोचेंगे।’ अमेज़न प्राइम पर आई इस वेब-सीरिज़ ‘ग्राम चिकित्सालय’ का एक झोला छाप डॉक्टर जब एक मरीज से यह कहता है तो लगता है कि इस सीरिज़ को बनाने वाले भी हमसे यही कहना चाहते हैं कि यह वाली सीरिज़ हमारी ही बनाई ‘पंचायत’ जैसी लग रही हैं। पांच एपिसोड देखिए, पसंद आई तो ठीक, नहीं तो फिर सोचेंगे।’ ‘ग्राम चिकित्सालय’ का ट्रेलर देखिए तो आप एकदम से गमक उठेंगे कि वाह, यह तो ‘पंचायत’ जैसी है। वही स्वाद, वही खुशबू तो ज़ाहिर है कि मज़ा भी वैसा ही होगा। लेकिन ऐसा है नहीं। यूं इस सीरिज़ की कहानी का ढांचा ‘पंचायत’ सरीखा ही है। वहां गांव में नए पंचायत सचिव आए थे, यहां गांव के ग्राम चिकित्सालय में नए डॉक्टर साहब आए हैं। चिकित्सालय में कम्पाउंडर है, वॉर्ड बॉय है, नर्स है, स्वीपर भी है। बस नहीं है तो चिकित्सालय में जाने का रास्ता और न ही कोई मरीज़। चिकित्सालय के स्टाफ समेत पूरे गांव को भरोसा है कि यह वाला डॉक्टर भी यहां दो दिन से ज़्यादा नहीं टिकेगा। लेकिन दिल्ली से आए डॉक्टर प्रभात के इरादे कुछ और ही हैं।

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Image of scene from the film Jai Mata Ji Let's Rock

Jai Mata Ji Let's Rock

Comedy, Family, Drama (Gujarati)

मज़ा, मस्ती, मैसेज ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में

Fri, May 9 2025

सरकार ने ऐलान किया है कि 80 साल से ऊपर के हर बुजुर्ग को हर महीने एक लाख रुपए की पेंशन मिलेगी। अब अचानक से सब लोगों के भीतर वृद्धों के प्रति प्रेम जाग गया है। अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ आए लोग अब विनती करके उन्हें वापस ला रहे हैं। जो कमल और गुलाब अपनी मां को पास नहीं रखना चाहते थे, अब उन्हें अपने-अपने पास रखने के लिए लड़ रहे हैं। दोनों बहुओं में तकरार हो रही है कि सास की ज़्यादा सेवा कौन करेगा। लेकिन सासू बा भी गजब हैं। इस नई पारी के खुल कर मज़े ले रही हैं। और तभी आता है एक ट्विस्ट…! मनोरंजन के रैपर में लपेट कर मैसेज देने वाले लेखक-निर्देशक मनीष सैनी अपनी दो गुजराती फिल्मों ‘ढ’ और ‘गांधी एंड कंपनी’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके हैं। अब अपनी इस अगली गुजराती फिल्म ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में भी वह तारीफें पाने लायक काम करते दिखे हैं।

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Image of scene from the film Raid 2

Raid 2

Drama, Crime (Hindi)

अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’

Thu, May 1 2025

कोई फिल्म आकर दिल-दिमाग में जगह बना ले तो मन करता है कि इस जैसी और कहानियां भी आएं ताकि सिनेमा दर्शकों को न सिर्फ मनोरंजन देता रहे बल्कि उन्हें मसालों में लिपटे पलायनवादी सिनेमा से परे ऐसी कहानियां भी परोसे जो हमें खुद से मिलवाती हैं। सात साल पहले जब राजकुमार गुप्ता के निर्देशन में अजय देवगन वाली ‘रेड’ आई थी तो यही उम्मीद जगी थी कि अपने देश में तो इन्कम टैक्स वालों के हैरतअंगेज़ छापों की ढेरों मिसालें हैं सो बहुत जल्द किसी न किसी रेड की कहानी पर्दे पर आ ही जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब सात साल बाद ‘रेड 2’ आई तो मन में अरमान जगे कि ज़रूर इन लोगों के हाथ फिर कोई ज़बर्दस्त कहानी लगी होगी वरना ये लोग इतनी देर नहीं लगाते। मगर क्या ‘रेड 2’ उन अरमानों को पूरा कर पाती है? आइए जानते हैं कि क्या इस फिल्म में वह बात है जो ‘रेड’ में थी, जिसे देख कर मैंने लिखा था कि ऐसी ‘रेड’ ज़रूर पड़े, बार-बार पड़े।

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Image of scene from the film Costao

Costao

Drama (Hindi)

ईमानदारी की कीमत चुकाती ‘कॉस्ताव’

Thu, May 1 2025

गोआ कस्टम में एक अफसर हुआ करते थे-कॉस्ताव फर्नांडीज़। बेहद बहादुर, साहसी और ईमानदार। लेकिन ये तीनों गुण इंसान से अपनी कीमत मांगते हैं। कॉस्ताव को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ी। एक रेड के दौरान उनके हाथों से एक आदमी मारा गया और उन पर लग गया उसके कत्ल का इल्ज़ाम। क्या कॉस्ताव इस आरोप से बरी हो पाए? क्या कीमत चुकानी पड़ी उन्हें अपनी ईमानदारी की? यह फिल्म उन्हीं कॉस्ताव फर्नांडीज़ की कहानी दिखाती है। एक गुमनाम-से कस्टम अफसर की कहानी में ऐसा क्या हो सकता है कि कोई उस पर फिल्म बनाए? ज़ाहिर है कि किसी भी फिल्म की सबसे ज़रूरी चीज़ होती है उससे मिलने वाला मनोरंजन और मैसेज, जिसे नाटकीय घटनाओं के ज़रिए दर्शकों तक पहुंचाया जाता है। इस फिल्म में भी ये कोशिशें हुई हैं। लेखक भावेश मंडालिया और मेघना श्रीवास्तव ने कॉस्ताव की ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव दिखाते हुए इस बात के भरसक प्रयत्न किए है कि वे उन्हें रोचक बना सकें और दर्शकों को बांध सकें। लेकिन वे इसमें पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाए हैं। इस किस्म की कहानी जिसमें ज़बर्दस्त थ्रिल हो सकता है, ईमानदार नायक की भ्रष्ट लोगों के साथ तगड़ी भिड़ंत हो सकती है, देश और फर्ज़ के प्रति उसके जुड़ाव से भावनाओं का बहाव हो सकता है, वह अगर काफी हद तक ‘रूखी’ और ‘ठंडी’ निकले तो कसूर लेखकों का ही माना जाएगा। बायोपिक बनाते समय तथ्यात्मक तौर पर ईमानदार होना ठीक है लेकिन सिनेमा की भाषा, शिल्प और शैली को समझते हुए फिल्म वालों को नाटकीय होना पड़ेगा, फिल्म बना रहे हैं तो ड्रामा डालना पड़ेगा, नहीं तो नतीजा वही होगा जो इस फिल्म का हुआ है-रूखा, ठंडा, हल्का।

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Image of scene from the film Jewel Thief - The Heist Begins

Jewel Thief - The Heist Begins

Action, Thriller (Hindi)

धूल मचाने निकला ‘ज्वेल थीफ’

Sun, April 27 2025

सबसे पहले तो नेटफ्लिक्स वालों को अपने सब्सक्राइर्ब्स से यह शपथ-पत्र साइन करवा लेना चाहिए कि ‘ज्वेल थीफ’ नाम की इस फिल्म को देखने से पहले वे लोग कोई रिव्यू नहीं पढ़ेंगे, फिल्म देखते समय कोई सवाल नहीं पूछेंगे और फिल्म देखने के बाद बिना गाली-गलौज किए अपना सब्सक्रिप्शन जारी रखेंगे। चलिए आगे बढ़ते हैं। हां तो, एक विलेन है जिसके बारे में पूरी दुनिया के क्राइम वर्ल्ड को पता है कि वह बदमाश आदमी है, नहीं पता तो मुंबई पुलिस को, दुनिया भर की पुलिस को। उसे पांच सौ करोड़ के एक हीरे की चोरी करवानी है इसलिए वह एक नामी चोर के पापा को ब्लैकमेल करता है। वह नामी चोर क्यों नामी है, यह बात हमें नहीं बताई जाती। भई, हर बात क्यों बताई जाए 149 रुपए में पूरा महीना नेटफ्लिक्स चाटने वालों को? हां तो, उस नामी चोर के पीछे मुंबई पुलिस के एक अफसर ने सरकारी खर्चे पर दो ऐसे बंदे छोड़ रखे हैं जो विदेशों में घूम-घूम कर उस पर सिर्फ ‘नज़र’ रख रहे हैं और उनमें से एक तो चिप्स खा-खाकर इतना तगड़ा (मोटा पढ़िए) हो चुका है कि चार कदम भी नहीं भाग पाता। इन्हें चकमा देकर वह नामी चोर मुंबई आ जाता है क्योंकि वह हीरा भी मुंबई आने वाला है। यह बात भी सबको पता है, बस नहीं पता तो हमारे उस पुलिस अफसर को। वैसे इस पुलिस अफसर की मुंबई में भले ही न चलती हो, विदेशी पुलिस इसके एक इशारे पर जुट जाती है। अब शुरू होती है उस हीरे को चुराने की मुहिम और साथ ही शुरू होता है चोर-पुलिस का खेल।

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Image of scene from the film Phule

Phule

History, Drama (Hindi)

ज्योतिबा की क्रांति दिखाती ‘फुले’

Sat, April 26 2025

महान समाज सुधारक ज्योतिराव फुले (1827-1890) और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले (1831-1897) के बारे में हम सबने सुना है। लेकिन कितना…? दरअसल भारत भूमि के हर कोने में इतने सारे महान व्यक्ति जन्म ले चुके हैं कि हर किसी के बारे में हर कोई विस्तार से जान भी नहीं सकता। किताबें हर कोई पढ़ता नहीं, ऐसे में सिनेमा आकर हमें इनके बारे में बताते हुए अपनी भूमिका सार्थक करता है। निर्देशक अनंत नारायण महादेवन की यह फिल्म ‘फुले’ यही काम करती है, पूरी सफलता के साथ। ज्योतिबा फुले ने समतामूलक समाज का न सिर्फ स्वप्न देखा था बल्कि अपना पूरा जीवन उस स्वप्न को सत्य बनाने में लगा दिया। खासतौर से बेटियों को शिक्षित करने और स्त्रियों को उनके अधिकार दिलवाने जैसे उनके कार्य वंदनीय थे। उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले ने भी इस क्रांति में कंधे ने कंधा मिला कर उनका साथ दिया। वह सावित्री बाई ही थीं जिन्होंने शूद्रों को पहली बार ‘दलित’ नाम दिया था। ज्योतिबा को ‘महात्मा’ कहा गया और आज तक पूरा भारत फुले दंपती को पूज्य मानता है। यह फिल्म ‘फुले’ उनकी इसी संघर्ष यात्रा को दिखाती है।

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Image of scene from the film Kesari: Chapter 2

Kesari: Chapter 2

Drama, History (Hindi)

जलियांवाला बाग के ज़ख्म कुरेदने आई ‘केसरी 2’

Sat, April 19 2025

कभी जलियांवाला बाग गए हैं आप? अमृतसर में हरमंदिर साहिब के पास यह वही जगह है जहां 13 अप्रैल, 1919 को उस खूनी बैसाखी के दिन अंग्रेज़ी हुकूमत के सनकी जनरल डायर की चलवाई गोलियों से सैंकड़ों बेकसूर, निहत्थे हिन्दुस्तानी मारे गए थे। इस बाग की दीवारों पर आज भी उन गोलियों के निशान दिख जाएंगे। गौर से देखेंगे तो सूख चुके खून के छींटे भी। और गौर करेंगे तो लगेगा कि ये दीवारें फुसफुसा रही हैं। जैसे कह रही हों कि इन्होंने उस शाम यहां नाइंसाफी का जो मंजर देखा था उसकी माफी इन्हें कब सुनने को मिलेगी? यह फिल्म ‘केसरी चैप्टर 2-द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ जलियांवाला बाग’ हमें वही फुसफुसाहटें सुनाने आई है। ‘केसरी 2’ का ट्रेलर रिलीज़ होने से पहले चंद ही लोगों को यह बात मालूम थी कि जलियांवाला बाग के उस नरसंहार के बाद एक भारतीय वकील ने ब्रिटिश अदालत में यह साबित किया था उस दिन जनरल डायर वहां ‘दंगे पर उतारू भीड़’ को नियंत्रित करने नहीं बल्कि निहत्थे लोगों पर एक सोची-समझी साज़िश के तहत गोलियां चलाने गया था वरना अंग्रेज़ी हुकूमत ने तो अपनी रिपोर्ट में उस भीड़ को दंगाई और आतंकी करार देते हुए जनरल डायर को क्लीन चिट दे दी थी। वह वकील यानी सी. शंकरन नायर 1897 में कांग्रेस का अध्यक्ष रह चुका था, अंग्रेज़ी हुकूमत का इतना ज़्यादा वफादार था कि उसे ‘सर’ की उपाधि दी गई थी। लेकिन जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद उसने अपना रास्ता बदल लिया था। यह फिल्म हमें उसे इसी बदले हुए रास्ते पर चलते हुए दिखाने आई है।

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