
Deepak Dua
Independent Film Journalist & Critic
Deepak Dua is a Hindi Film Critic honored with the National Award for Best Film Critic. An independent Film Journalist since 1993, who was associated with Hindi Film Monthly Chitralekha and Filmi Kaliyan for a long time. The review of the film Dangal written by him is being taught in the Hindi textbooks of class 8 and review of the film Poorna in class 7 as a chapter in many schools of the country.
All reviews by Deepak Dua

Rekhachithram
Mystery, Thriller (Malayalam)
अद्भुतम ‘रेखाचित्रम’
Mon, March 17 2025
जंगल में एक अधेड़ शख्स वीडियो बना कर खुद को गोली मार लेता है। वीडियो में वह बताता है कि 1985 में उसने अपने दो साथियों के साथ मिल कर इसी जगह पर एक लड़की को गाड़ा था। खुदाई में पुलिस को वहां एक लाश मिलती है। पता चलता है कि यह किसी रेखा नाम की लड़की की लाश है। मारने वालों को भी पुलिस पहचान लेती है। धीरे-धीरे पुलिस को यह भी पता चल जाता है कि रेखा को क्यों मारा गया। लेकिन एक रहस्य अंत तक बना रहता है कि रेखा आखिर थी कौन? कहां से आई थी रेखा? और क्या वह लाश सचमुच रेखा की ही थी? हिन्दी वाले जो अक्सर छाती पीटते हैं न कि उनके पास अच्छी कहानियां नहीं होतीं, उन्हें साऊथ की ऐसी फिल्में देखनी चाहिएं और गौर करना चाहिए कि क्यों साऊथ वाले उनसे कंटेंट के स्तर पर चार कदम आगे खड़े होते हैं। सीखना चाहिए उनसे कि जब कोई थ्रिलर बनाओ तो उसमें थ्रिल पर फोकस करो, सस्पैंस रखो तो ऐसा रखो कि देखने वाला सिर के बाल नोच ले लेकिन उसे क्लू न मिले। यह नहीं कि पुलिस वाले हीरो की डिस्टर्ब लव-लाइफ दिखा दो, हीरो है तो मारधाड़ दिखा दो, बेमतलब का नाच-गाना दिखा दो, पर्दे पर हीरोइन आई नहीं कि उससे कोई ‘ऐसा-वैसा’ सीन करवा लो, जबरन कोई कॉमेडियन घुसेड़ दो। मतलब यह कि जब तक हिन्दी वाले अच्छी-भली कहानी के ऊपर बिना ज़रूरत के मसाले बुरकते रहेंगे, उनकी फिल्मों का रंग भले चोखा निकले, स्वाद बिगड़ा हुआ ही निकलेगा।

Be Happy
Drama, Music (Hindi)
डोन्ट वॉच एंड ‘बी हैप्पी’
Sat, March 15 2025
धारा नाम की एक बच्ची ऊटी में अपने पापा और नाना के साथ रहती है। कमाल का डांस करती है सो ‘इंडियाज़ सुपरस्टार डांसर’ नामक शो में भाग लेने के लिए मुंबई जाना चाहती है। पापा मना करते हैं तो डांस-टीचर उन्हें समझाती है कि पेरेंट्स दो तरह के होते हैं-एक वो जिनके बच्चे उनके ड्रीम्स जीते हैं और दूसरे वो जो अपने बच्चों के ड्रीम्स जीते हैं। बात पापा को लग जाती है और ये लोग पहुंच जाते हैं मुंबई। लेकिन यहां कुछ ऐसा होता है कि सारे ड्रीम्स एक तरफ हो जाते हैं। तब पापा कहता है कि मैंने धारा को कभी गिरने नहीं दिया है, आज भी गिरने नहीं दूंगा। कहानी बढ़िया है। एक बच्ची, उसका ड्रीम, कभी आड़े आया पिता जो आज उसके साथ है। यह धुकधुकी कि अब उसका सपना सच होगा या नहीं…! लेकिन यह कहानी एक पैराग्राफ में ही बढ़िया लगती है क्योंकि फिल्म कहानी पर नहीं, उस पर फैलाई गई स्क्रिप्ट पर बनती है और इस फिल्म की स्क्रिप्ट न सिर्फ ढीली व कमज़ोर है बल्कि इसमें से वह भावनाओं और संवेदनाओं की खुशबू भी लापता है जो इस किस्म की फिल्मों की जान होती है। वह खुशबू, जो दर्शकों के नथुनों से भीतर जाकर उसके ज़ेहन में जगह बनाती है, उसे उद्वेलित करती है और अंत में भावुक करते हुए उसे भिगो जाती है। इस फिल्म में यह खुशबू बस कहने भर को है जो एक-आध दफा महसूस होती है और फिर हवा हो जाती है।

The Diplomat
Thriller, Drama (Hindi)
अच्छी है, सच्ची है
Sat, March 15 2025
मई, 2017 की बात है। एक पाकिस्तानी जोड़ा भारत का वीज़ा लेने के लिए पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास पहुंचा। काउंटर पर पहुंच कर उस लड़की उज़्मा अहमद ने कहा कि मैं भारतीय हूं और यहां फंस गई हूं, कृपया मेरी मदद कीजिए। भारतीय डिप्लोमेट जे.पी. सिंह ने मामले की नज़ाकत को समझते हुए उस लड़की को दूतावास में शरण दी। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान की धरती पर एक पेचीदा कानूनी लड़ाई लड़ने और उसमें जीतने के बाद उस लड़की को वापस भारत लाने में कामयाबी पाई। इस लड़ाई में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री (स्वर्गीय) सुषमा स्वराज की महती भूमिका रही जिन्होंने न सिर्फ उस लड़की को बेफिक्र किया बल्कि राजनयिक जे.पी. सिंह की पीठ भी थपथपाई। यह फिल्म ‘द डिप्लोमेट’ (The Diplomat) उसी कहानी को दिखाती है, बहुत सारी विश्वसनीयता के साथ, थोड़े फिल्मीपने के साथ। किसी सच्ची घटना पर फिल्में अपने यहां हमेशा से बनती आई हैं। हाल के बरसों में यह रफ्तार थोड़ी तेज़ हुई है तो उसकी प्रमुख वजह यह है कि दर्शकों में ऐसी कहानियों को देखने व सराहने के प्रति जागरूकता बढ़ी है। ऐसे में यदि फिल्म वाले चुन-चुन कर ऐसी कहानियां सामने ला रहे हैं जो सच की कोख से निकली हैं और दर्शकों को छू पा रही हैं तो उनकी सराहना होनी चाहिए। खासतौर से तब, जब उन कहानियों को परोसा भी सलीके से गया हो। यह फिल्म यही करती है।

Bada Naam Karenge
Drama, Family (Hindi)
दिल के छज्जे पे चढ़ेंगे, ‘बड़ा नाम करेंगे’
Thu, March 6 2025
सोनी लिव पर आई नौ एपिसोड की इस वेब-सीरिज़ के पांचवें एपिसोड के अंत में जब नायक ऋषभ नायिक सुरभि से कहता है-‘मुझ से शादी कर लो प्लीज़’ तो उसकी आंखें नम होती हैं। यह सुनते हुए सुरभि की भी आंखें नम होती हैं। इस सीन को यहीं पॉज़ कर दीजिएगा और गौर कीजिएगा कि एक हल्की-सी नमी आपकी आंखों में भी होगी। अब याद कीजिएगा कि आपकी आंखें इससे पहले के एपिसोड्स में भी कुछ जगह पनियाई होंगी और ध्यान रखिएगा, अभी आगे भी आपकी आंखों में कई बार नमी आएगी। बल्कि कुछ एक बार तो यह नमी झरने का रूप भी लेना चाहेगी। जी हां, यह इस कहानी की ताकत है, उस सिनेमा की ताकत है जो ऐसी कहानी को आपके सामने इस तरह से लाता है कि आप, आप नहीं रहते बल्कि इस कहानी के किरदार हो जाते हैं, कभी मुंबई, कभी उज्जैन तो कभी रतलाम हो जाते हैं।

Crazxy
Thriller (Hindi)
‘क्रेज़ी’ किया रे…
Fri, February 28 2025
पहले ‘शिप ऑफ थीसियस’, फिर ‘तुम्बाड़’ और अब यह फिल्म ‘क्रेज़ी’-इतना तो साफ है कि बतौर निर्माता सोहम शाह जो कर रहे हैं उसे एक शब्द में कहा जाए तो वह होगा-दुस्साहस। जब बनाने वाले को दो और दो मिला कर पांच न करने हों, जब उसे टिकट-खिड़की के आंकड़ों की परवाह न हो तो ही वह कुछ हट के वाला सिनेमा बना पाता है। ‘क्रेज़ी’ (Crazxy) इस का ताज़ा उदाहरण है। किसी को पांच करोड़ रुपए देने जा रहे डॉक्टर अभिमन्यु सूद को फोन आता है कि उसकी बेटी किडनैप कर ली गई है और फिरौती की रकम है-पूरे पांच करोड़। वही बेटी जिसे अभिमन्यु ने कभी जी भर कर निहारा तो दूर, स्वीकारा तक नहीं। वही बेटी जो अभिमन्यु की तलाकशुदा पत्नी के पास रहती है। इधर अभिमन्यु की ज़िंदगी दांव पर है। उधर उसकी तलाकशुदा पत्नी अपनी बेटी को बचाने के लिए मिन्नतें कर रही है। वहीं उसकी प्रेमिका उसे इस झमेले से दूर रहने को उकसा रही है। लेकिन इस चक्रव्यूह में फंस चुका अभिमन्यु तय करता है कि वह अब भेजे की नहीं सुनेगा क्योंकि भेजे की सुनेगा तो…!

Superboys of Malegaon
Comedy, Drama (Hindi)
गहरे नहीं उतर पाते ‘सुपरबॉयज़ ऑफ मालेगांव’
Wed, February 26 2025
सिनेमा से राब्ता रखने वालों को तो मालेगांव और वहां की सिनेमाई हलचलों के बारे में पता होगा। जिन्हें नहीं पता, वे पहले यह जान लें कि मालेगांव दरअसल महाराष्ट्र के नासिक जिले का एक छोटा-सा मुस्लिम बहुल शहर है। 90 के दशक में यहां के एक उत्साही युवक नासिर शेख ने अपने दोस्तों, साथियों के साथ मिल कर बहुत कम पैसों में ‘मालेगांव के शोले’, ‘मालेगांव का चिंटू’ सरीखी फिल्में बना कर खूब वाहवाही बटोरी थी और अपनी एक स्थानीय फिल्म इंडस्ट्री खड़ी कर डाली थी। उनके बारे में 2012 में आई फैज़ा अहमद खान की एक डॉक्यूमैंट्री ‘सुपरमैन ऑफ मालेगांव’ बहुत सराही गई थी। उसी डॉक्यूमैंट्री और मालेगांव के उन नौजवानों की ज़िंदगी पर डायरेक्टर रीमा कागती यह फिल्म ‘सुपरबॉयज़ ऑफ मालेगांव’ लेकर आई हैं। ‘सुपरबॉयज़ ऑफ मालेगांव’ कुछ ऐसे नौजवानों की ज़िंदगी दिखाती है जो फोटो स्टूडियो, दुकानदारी, कपड़े की मिल आदि में काम करते हुए रुटीन ज़िंदगी जी रहे हैं लेकिन कुछ अलग, कुछ बड़ा करने की चाहत इन्हें फिल्म-निर्माण की तरफ ले जाती है। कामयाबी मिलने के बाद रिश्तों में दूरियां आती हैं तो मुश्किल वक्त इन्हें फिर से करीब भी ले आता है।

Mere Husband Ki Biwi
Drama, Comedy (Hindi)
चटनी चटाती
Wed, February 26 2025
अंकुर चड्ढा और प्रभलीन ढिल्लों (जिसे फिल्म में ढिल्लों, ढिल्लोन, ढिल्लन भी कहा गया) का तलाक हो चुका है लेकिन प्रभलीन के साथ बिताए बुरे दिन अंकुर की यादों से नहीं निकल पा रहे हैं। उसे पुरानी दोस्त अंतरा खन्ना मिलती है, दोनों करीब आते हैं कि तभी प्रभलीन लौट आती है और अंकुर को वापस पाने की जुगत में लग जाती है। कौन जीतेगी इस रेस में? हस्बैंड को छोड़ चुकी बीवी या हस्बैंड की होने वाली बीवी? अपने आकर्षक नाम और अपनी कहानी की रूपरेखा से लुभाती इस फिल्म को पति-पत्नी के रिश्ते की पेचीदगियों के इर्दगिर्द बुनी एक कॉमेडी फिल्म का कलेवर दिया गया है। फिल्म अपने फ्लेवर में है भी ऐसी जिससे हल्की-फुल्की कॉमेडी उपजती रहे और रिश्तों की संजीदगियों पर बात भी न हो। अपने ‘बॉलीवुड’ से आने वाली इस किस्म की फिल्में अक्सर यही तो करती आई हैं। आइए, देखिए, टाइमपास कीजिए और जाइए। जिसे कोई सीख लेनी हो ले ले, हम तो मसखरी दिखाएंगे।

Loveyapa
Comedy, Drama, Romance (Hindi)
जेन ज़ी के लव-शव का स्यापा ‘लवयापा’
Sat, February 15 2025
यह जेन ज़ी की फिल्म है। जेन ज़ी बोले तो 21वीं सदी के पहले दशक में जन्मी वह पीढ़ी जिसने पैदा होते ही मोबाइल देखा और इस यंत्र को इस कदर अपना लिया कि अपने दोस्तों, परिवार वालों से ज़्यादा यारी इससे कर ली। इस यंत्र में इन्होंने इतना कुछ भर लिया कि उसे अपनों से ही छुपाने की नौबत आ गई और यही कारण है कि इस जेनरेशन का शायद ही कोई शख्स होगा जिसके मोबाइल में ताला न लगा हो। यह फिल्म उसी ताले के पीछे छुपे राज़ सामने लाकर इस पीढ़ी के रिश्तों के खोखलेपन का दीदार कराती है। बानी और गौरव आपस में प्यार करते हैं। बानी के पिता इन दोनों के सामने शर्त रखते हैं कि तुम दोनों एक दिन के लिए अपने-अपने मोबाइल फोन एक-दूसरे को दे दो। इसके बाद इनके जो राज़ खुलने लगते हैं उससे इनके रिश्ते की दरारों के साथ-साथ इनकी और इनके आसपास के लोगों की ज़िंदगियों का खोखलापन भी दिखने लगता है।
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