
Deepak Dua
Independent Film Journalist & Critic
Deepak Dua is a Hindi Film Critic honored with the National Award for Best Film Critic. An independent Film Journalist since 1993, who was associated with Hindi Film Monthly Chitralekha and Filmi Kaliyan for a long time. The review of the film Dangal written by him is being taught in the Hindi textbooks of class 8 and review of the film Poorna in class 7 as a chapter in many schools of the country.
All reviews by Deepak Dua

Jewel Thief - The Heist Begins
Action, Thriller (Hindi)
धूल मचाने निकला ‘ज्वेल थीफ’
Sun, April 27 2025
सबसे पहले तो नेटफ्लिक्स वालों को अपने सब्सक्राइर्ब्स से यह शपथ-पत्र साइन करवा लेना चाहिए कि ‘ज्वेल थीफ’ नाम की इस फिल्म को देखने से पहले वे लोग कोई रिव्यू नहीं पढ़ेंगे, फिल्म देखते समय कोई सवाल नहीं पूछेंगे और फिल्म देखने के बाद बिना गाली-गलौज किए अपना सब्सक्रिप्शन जारी रखेंगे। चलिए आगे बढ़ते हैं। हां तो, एक विलेन है जिसके बारे में पूरी दुनिया के क्राइम वर्ल्ड को पता है कि वह बदमाश आदमी है, नहीं पता तो मुंबई पुलिस को, दुनिया भर की पुलिस को। उसे पांच सौ करोड़ के एक हीरे की चोरी करवानी है इसलिए वह एक नामी चोर के पापा को ब्लैकमेल करता है। वह नामी चोर क्यों नामी है, यह बात हमें नहीं बताई जाती। भई, हर बात क्यों बताई जाए 149 रुपए में पूरा महीना नेटफ्लिक्स चाटने वालों को? हां तो, उस नामी चोर के पीछे मुंबई पुलिस के एक अफसर ने सरकारी खर्चे पर दो ऐसे बंदे छोड़ रखे हैं जो विदेशों में घूम-घूम कर उस पर सिर्फ ‘नज़र’ रख रहे हैं और उनमें से एक तो चिप्स खा-खाकर इतना तगड़ा (मोटा पढ़िए) हो चुका है कि चार कदम भी नहीं भाग पाता। इन्हें चकमा देकर वह नामी चोर मुंबई आ जाता है क्योंकि वह हीरा भी मुंबई आने वाला है। यह बात भी सबको पता है, बस नहीं पता तो हमारे उस पुलिस अफसर को। वैसे इस पुलिस अफसर की मुंबई में भले ही न चलती हो, विदेशी पुलिस इसके एक इशारे पर जुट जाती है। अब शुरू होती है उस हीरे को चुराने की मुहिम और साथ ही शुरू होता है चोर-पुलिस का खेल।

Phule
History, Drama (Hindi)
ज्योतिबा की क्रांति दिखाती ‘फुले’
Sat, April 26 2025
महान समाज सुधारक ज्योतिराव फुले (1827-1890) और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले (1831-1897) के बारे में हम सबने सुना है। लेकिन कितना…? दरअसल भारत भूमि के हर कोने में इतने सारे महान व्यक्ति जन्म ले चुके हैं कि हर किसी के बारे में हर कोई विस्तार से जान भी नहीं सकता। किताबें हर कोई पढ़ता नहीं, ऐसे में सिनेमा आकर हमें इनके बारे में बताते हुए अपनी भूमिका सार्थक करता है। निर्देशक अनंत नारायण महादेवन की यह फिल्म ‘फुले’ यही काम करती है, पूरी सफलता के साथ। ज्योतिबा फुले ने समतामूलक समाज का न सिर्फ स्वप्न देखा था बल्कि अपना पूरा जीवन उस स्वप्न को सत्य बनाने में लगा दिया। खासतौर से बेटियों को शिक्षित करने और स्त्रियों को उनके अधिकार दिलवाने जैसे उनके कार्य वंदनीय थे। उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले ने भी इस क्रांति में कंधे ने कंधा मिला कर उनका साथ दिया। वह सावित्री बाई ही थीं जिन्होंने शूद्रों को पहली बार ‘दलित’ नाम दिया था। ज्योतिबा को ‘महात्मा’ कहा गया और आज तक पूरा भारत फुले दंपती को पूज्य मानता है। यह फिल्म ‘फुले’ उनकी इसी संघर्ष यात्रा को दिखाती है।

Kesari: Chapter 2
Drama, History (Hindi)
जलियांवाला बाग के ज़ख्म कुरेदने आई ‘केसरी 2’
Sat, April 19 2025
कभी जलियांवाला बाग गए हैं आप? अमृतसर में हरमंदिर साहिब के पास यह वही जगह है जहां 13 अप्रैल, 1919 को उस खूनी बैसाखी के दिन अंग्रेज़ी हुकूमत के सनकी जनरल डायर की चलवाई गोलियों से सैंकड़ों बेकसूर, निहत्थे हिन्दुस्तानी मारे गए थे। इस बाग की दीवारों पर आज भी उन गोलियों के निशान दिख जाएंगे। गौर से देखेंगे तो सूख चुके खून के छींटे भी। और गौर करेंगे तो लगेगा कि ये दीवारें फुसफुसा रही हैं। जैसे कह रही हों कि इन्होंने उस शाम यहां नाइंसाफी का जो मंजर देखा था उसकी माफी इन्हें कब सुनने को मिलेगी? यह फिल्म ‘केसरी चैप्टर 2-द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ जलियांवाला बाग’ हमें वही फुसफुसाहटें सुनाने आई है। ‘केसरी 2’ का ट्रेलर रिलीज़ होने से पहले चंद ही लोगों को यह बात मालूम थी कि जलियांवाला बाग के उस नरसंहार के बाद एक भारतीय वकील ने ब्रिटिश अदालत में यह साबित किया था उस दिन जनरल डायर वहां ‘दंगे पर उतारू भीड़’ को नियंत्रित करने नहीं बल्कि निहत्थे लोगों पर एक सोची-समझी साज़िश के तहत गोलियां चलाने गया था वरना अंग्रेज़ी हुकूमत ने तो अपनी रिपोर्ट में उस भीड़ को दंगाई और आतंकी करार देते हुए जनरल डायर को क्लीन चिट दे दी थी। वह वकील यानी सी. शंकरन नायर 1897 में कांग्रेस का अध्यक्ष रह चुका था, अंग्रेज़ी हुकूमत का इतना ज़्यादा वफादार था कि उसे ‘सर’ की उपाधि दी गई थी। लेकिन जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद उसने अपना रास्ता बदल लिया था। यह फिल्म हमें उसे इसी बदले हुए रास्ते पर चलते हुए दिखाने आई है।

Logout
Thriller (Hindi)
ज़िंदगी को लॉगिन करना सिखाती ‘लॉगआउट’
Thu, April 17 2025
ज़रा सोचिए-आपका मोबाइल फोन, जिसमें आपके सारे राज़, सारे पासवर्ड, सारा कच्चा-चिट्ठा है, वह किसी के हाथ लग जाए और उसके बाद वह आपको अपने इशारों पर नचाने लगे तो…? ज़ी-5 पर आई इस फिल्म ‘लॉगआउट’ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। सोशल मीडिया पर कंटैंट बना कर डालने वाले प्रत्यूष दुआ यानी प्रैटमैन को लगता है कि उसके एक करोड़ प्रशंसकों का रिमोट कंट्रोल उसके हाथ में है। लेकिन उसे असलियत का अहसास तब होता है जब एक दिन उसका फोन किसी लड़की के हाथ लग जाता है और अब प्रत्यूष का रिमोट कंट्रोल उसके पास है। वह जो चाहती है, प्रत्यूष को करना पड़ता है। और तभी होता है एक मर्डर…! यह नए ज़माने की कहानी है। इसे आप टेक-थ्रिलर कह सकते हैं। सोशल मीडिया पर अपने फॉलोवर्स बढ़ाने के लिए कुछ भी ऊल-जलूल पोस्ट कर रहे कंटैट क्रिएटर्स के खट्टे, मीठे और कभी-कभी कड़वे किस्से हम-आप गाहे-बगाहे पढ़ते ही रहते हैं। यह फिल्म हमें उन लोगों की उस दुनिया में ले जाती है जो दूर से तो चमक-दमक भरी दिखती है लेकिन उसके अंदर का सच सिर्फ वे ही जानते हैं, या शायद वे भी नहीं जानते हैं। सोशल मीडिया पर किसी कंटैट क्रिएटर को फॉलो करने वालों को ‘लगता’ है कि वे उस क्रिएटर के फैन हैं और वह क्रिएटर उनका हीरो। लेकिन असलियत अक्सर इससे उलट ‘होती’ है। यह फिल्म इसी ‘लगने’ और ‘होने’ के फर्क को अंडरलाइन करती है।

Jaat
Action, Drama (Hindi)
‘जाट’ का ठाठ-ढाई किलो का हाथ
Fri, April 11 2025
दक्षिण भारत की यात्रा पर निकला अपना उत्तर भारतीय हीरो वहां के एक ढाबे वाली से पूछता है-अम्मा, दाल-रोटी मिलेगी। जवाब मिलता है-नहीं बेटा, यहां तो इडली है, डोसा है। तो चलो, वही खिला दो। यह फिल्म भी वैसी ही है। हिन्दी में बनी हुई एक साउथ इंडियन फिल्म। यहां तक कि जब पर्दे पर कुछ किरदार किसी दक्षिण भारतीय भाषा में संवाद बोलते हैं तो निर्देशक ने उनके सब-टाइटिल तक नहीं दिए है। भई इडली-डोसा खाइए, रेसिपी मत पूछिए। वैसे भी पिछले कुछ समय से फिल्म वालों ने पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, हर किस्म की थाली में साउथ इंडियन डिशेज़ परोस-परोस कर हमारी ज़बान का ज़ायका बदल डाला है। सो, जब तक इस ज़ायके की डिमांड है, इडली-डोसा ही परोसा जाएगा। भले ही इडली के संग छोले हों या डोसे के साथ दाल मक्खनी।

Sikandar
Action, Thriller (Hindi)
हिन्दी सिनेमा की कब्र खोदने आया सिकंदर’
Sun, March 30 2025
एक हीरो-दिल का सच्चा, कर्मों का अच्छा, हर किसी की मदद करने वाला, निर्बलों का रखवाला, बड़े दिलवाला। एक विलेन-ताकतवर मंत्री, पैसे वाला, कानून को जेब में रखने वाला, पुलिस को इशारों पर नचाने वाला, गुंडों को पालने वाला। इन दोनों में किसी तरह से दुश्मनी हो जाए तो क्या ज़बर्दस्त एक्शन देखने को मिलेगा न…! वाह-वाह बहुत बढ़िया, लेकिन कैसे कराओगे इनकी दुश्मनी? वह सब आप हम पर छोड़ दीजिए भाई जान, हमारे स्क्रिप्ट राइटर जान लगा देंगे। कहानी में चाहे कोई लॉजिक न डालें, किरदारों में चाहे कोई दम न डालें, फिल्म में एंटरटेनमैंट के नाम पर भले ही फलूदा डालना पड़े, पब्लिक चाहे अपनी छाती के बाल नोच ले लेकिन पर्दे पर होगा तो सिर्फ-तेरा ही जलवा, जलवा, जलवा…! यह हिन्दी सिनेमा का दुर्भाग्य है कि यहां के अधिकांश बड़े सितारे या तो देसी-विदेशी फिल्मों के रीमेक में काम कर रहे हैं या फिर दक्षिण भारतीय निर्देशकों की इडली-डोसा स्टाइल में बनाई ऐसी फिल्मों में जिनमें कथ्य से ज़्यादा ज़ोर स्टाइल पर रहता है। फिल्म वालों ने दशकों पहले जिन बेसिर-पैर की एक्शन फिल्मों की अफीम चटा-चटा कर हिन्दी के दर्शकों की बुद्धि खराब की थी, अब फिर से वही सब परोस कर इन्हें मूर्ख बनाया जा रहा है और अफसोस इस बात पर ज़्यादा किया जाना चाहिए कि आज के दर्शक भी हंसी-खुशी मूर्ख बन रहे हैं। ‘सिकंदर’ (Sikandar) भी यही करने आई है। जाइए, देखिए, बनिए, हमें क्या…!

Rekhachithram
Mystery, Thriller (Malayalam)
अद्भुतम ‘रेखाचित्रम’
Mon, March 17 2025
जंगल में एक अधेड़ शख्स वीडियो बना कर खुद को गोली मार लेता है। वीडियो में वह बताता है कि 1985 में उसने अपने दो साथियों के साथ मिल कर इसी जगह पर एक लड़की को गाड़ा था। खुदाई में पुलिस को वहां एक लाश मिलती है। पता चलता है कि यह किसी रेखा नाम की लड़की की लाश है। मारने वालों को भी पुलिस पहचान लेती है। धीरे-धीरे पुलिस को यह भी पता चल जाता है कि रेखा को क्यों मारा गया। लेकिन एक रहस्य अंत तक बना रहता है कि रेखा आखिर थी कौन? कहां से आई थी रेखा? और क्या वह लाश सचमुच रेखा की ही थी? हिन्दी वाले जो अक्सर छाती पीटते हैं न कि उनके पास अच्छी कहानियां नहीं होतीं, उन्हें साऊथ की ऐसी फिल्में देखनी चाहिएं और गौर करना चाहिए कि क्यों साऊथ वाले उनसे कंटेंट के स्तर पर चार कदम आगे खड़े होते हैं। सीखना चाहिए उनसे कि जब कोई थ्रिलर बनाओ तो उसमें थ्रिल पर फोकस करो, सस्पैंस रखो तो ऐसा रखो कि देखने वाला सिर के बाल नोच ले लेकिन उसे क्लू न मिले। यह नहीं कि पुलिस वाले हीरो की डिस्टर्ब लव-लाइफ दिखा दो, हीरो है तो मारधाड़ दिखा दो, बेमतलब का नाच-गाना दिखा दो, पर्दे पर हीरोइन आई नहीं कि उससे कोई ‘ऐसा-वैसा’ सीन करवा लो, जबरन कोई कॉमेडियन घुसेड़ दो। मतलब यह कि जब तक हिन्दी वाले अच्छी-भली कहानी के ऊपर बिना ज़रूरत के मसाले बुरकते रहेंगे, उनकी फिल्मों का रंग भले चोखा निकले, स्वाद बिगड़ा हुआ ही निकलेगा।

Be Happy
Drama, Music (Hindi)
डोन्ट वॉच एंड ‘बी हैप्पी’
Sat, March 15 2025
धारा नाम की एक बच्ची ऊटी में अपने पापा और नाना के साथ रहती है। कमाल का डांस करती है सो ‘इंडियाज़ सुपरस्टार डांसर’ नामक शो में भाग लेने के लिए मुंबई जाना चाहती है। पापा मना करते हैं तो डांस-टीचर उन्हें समझाती है कि पेरेंट्स दो तरह के होते हैं-एक वो जिनके बच्चे उनके ड्रीम्स जीते हैं और दूसरे वो जो अपने बच्चों के ड्रीम्स जीते हैं। बात पापा को लग जाती है और ये लोग पहुंच जाते हैं मुंबई। लेकिन यहां कुछ ऐसा होता है कि सारे ड्रीम्स एक तरफ हो जाते हैं। तब पापा कहता है कि मैंने धारा को कभी गिरने नहीं दिया है, आज भी गिरने नहीं दूंगा। कहानी बढ़िया है। एक बच्ची, उसका ड्रीम, कभी आड़े आया पिता जो आज उसके साथ है। यह धुकधुकी कि अब उसका सपना सच होगा या नहीं…! लेकिन यह कहानी एक पैराग्राफ में ही बढ़िया लगती है क्योंकि फिल्म कहानी पर नहीं, उस पर फैलाई गई स्क्रिप्ट पर बनती है और इस फिल्म की स्क्रिप्ट न सिर्फ ढीली व कमज़ोर है बल्कि इसमें से वह भावनाओं और संवेदनाओं की खुशबू भी लापता है जो इस किस्म की फिल्मों की जान होती है। वह खुशबू, जो दर्शकों के नथुनों से भीतर जाकर उसके ज़ेहन में जगह बनाती है, उसे उद्वेलित करती है और अंत में भावुक करते हुए उसे भिगो जाती है। इस फिल्म में यह खुशबू बस कहने भर को है जो एक-आध दफा महसूस होती है और फिर हवा हो जाती है।
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