
Deepak Dua
Independent Film Journalist & Critic
Deepak Dua is a Hindi Film Critic honored with the National Award for Best Film Critic. An independent Film Journalist since 1993, who was associated with Hindi Film Monthly Chitralekha and Filmi Kaliyan for a long time. The review of the film Dangal written by him is being taught in the Hindi textbooks of class 8 and review of the film Poorna in class 7 as a chapter in many schools of the country.
All reviews by Deepak Dua

Metro... in Dino
Drama, Romance, Comedy (Hindi)
मस्त पवन-सी है ‘मैट्रो… इन दिनों’
Fri, July 4 2025
2007 में आई अनुराग बसु की ही फिल्म ‘लाइफ इन ए… मैट्रो’ (Life In A… Metro) की तरह इस फिल्म ‘मैट्रो… इन दिनों’ (Metro… In Dino) में भी कई सारी कहानियां एक साथ चल रही हैं। बोरियत भरी शादीशुदा ज़िंदगी के बीच मोंटी घर से बाहर झांकता है और उसकी पत्नी काजोल उसे नचाती है। काजोल की छोटी बहन चुमकी अपने रिश्ते को लेकर कन्फ्यूज़ है। उसके करीब आया पार्थ तो किसी रिश्ते में ही नहीं पड़ना चाहता। पार्थ के दोस्त श्रुति और आकाश अपनी शादी, बच्चे और कैरियर के संघर्षों में उलझे हुए हैं। उधर काजोल की मां एक बार फिर अपने कॉलेज के दोस्त परिमल के पास जा पहुंची है। साथ ही परिमल की बहू और काजोल की बेटी की अलग-अलग कहानियां भी चल रही हैं। ‘लाइफ इन ए… मैट्रो’ जहां मुंबई शहर के कुछ जोड़ों को दिखा रही थी वहीं इस फिल्म ‘मैट्रो… इन दिनों’ (Metro… In Dino) में अनुराग की कलम ने मुंबई के अलावा दिल्ली, बंगलुरु, पुणे, कोलकाता जैसे शहरों में कहानी का विस्तार किया है जो दर्शाता है कि स्त्री-पुरुष संबंधों की उलझनें और सुलझनें कमोबेश हर जगह एक-सी हैं। अलग-अलग किस्म के किरदारों के ज़रिए वह इस बात को भी उभार पाते हैं कि रिश्तों की पेचीदगियां हर इंसान के खाते में दर्ज होती हैं। फिल्म में एक बात खास तौर पर उभर कर आती है कि रिश्तों में पारदर्शिता और संवादों की कमी से बात बिगड़ती है तो संभालने से संभल भी जाती है, बस कोशिशें जारी रहें।

Kaalidhar Laapata
Comedy, Drama (Hindi)
‘कालीधर’ के साथ मनोरंजन ‘लापता’
Fri, July 4 2025
कालीधर अब कुछ-कुछ भूलने लगा है। उससे छुटकारा पाने के लिए छोटे भाई उसे मेले में छोड़ आते हैं। लेकिन ज़मीन पाने के लिए अब वह उसे तलाश भी रहे हैं। मगर कालीधर वापस नहीं आना चाहता। अब वह के.डी. बन कर आठ बरस के एक नए अनाथ दोस्त बल्लू के साथ मिल कर अपनी अधूरी ख्वाहिशें पूरी कर रहा है। एक दिन वह लौटता है और…! 2019 में आई एक तमिल फिल्म ‘के.डी.’ के इस रीमेक (Kaalidhar Laapata) को उसी फिल्म की डायरेक्टर मधुमिता ने बनाया है। मूल फिल्म में 80 साल का एक बूढ़ा करुप्पू दुरई यानी के.डी. था जो तीन महीने से कोमा में था। एक दिन उसे होश आया और उसने सुन लिया कि उसके परिवार वाले उसे मारने का प्लान बना रहे हैं तो वह घर से भाग गया और एक आठ साल के अनाथ बालक कुट्टी के साथ मिल कर अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी करने लगा जिनमें एक ख्वाहिश भर-भर के चिकन बिरयानी खाने की भी थी। तमिल फिल्म की कहानी में तर्क दिखता है। 80 साल का बूढ़ा जो कोमा में पड़ा है, उससे छुटकारा पाने के लिए घरवाले उसकी ज़िंदगी पर फुल स्टॉप लगाने की साज़िश करें तो समझ आता है। लेकिन यहां जवान भाई है, वह भी हट्टा-कट्टा। याद्दाश्त भूलने की शुरुआती सीढ़ी पर खड़े बड़े भाई से छुटकारा पाने की ऐसी क्या जल्दी कि उसे मेले में छोड़ दिया जाए। और मेला भी कौन-सा, कुंभ का। यानी फिल्म बता रही है कि कुंभ में आप अपने घर के बड़ों को छोड़ कर आ सकते हैं। यही नहीं फिल्म यह भी दिखाती है कि कालीधर भोपाल के पास भोजपुर के विश्व प्रसिद्ध शिव मंदिर में सोता है, मंदिर में झाड़ू लगाता है लेकिन खाने के लिए चिकन बिरयानी वाले के पास जाता है। तमिल से हिन्दी में कहानी को कन्वर्ट करते हुए लेखकों के दिमाग की बत्तियां अक्सर ऐसे ही मोड़ों पर आकर फ्यूज़ हो जाती हैं। एक जबरन ठूंसा गया सीन और भी है जो दिखाता है कि भंडारे के लिए आने वाला चावल पंडित जी के घर पर जाता है। कत्तई एजेंडा परोस दो पत्तल पर।

Maa
Horror (Hindi)
’शैतान’ से ’मां’ की औसत भिड़ंत
Sat, June 28 2025
मार्च, 2024 में आई अजय देवगन, आर. माधवन वाली फिल्म ’शैतान’ में एक अजनबी शख्स एक किशोरी को अपने वश में कर लेता है और उस लड़की का पिता उस शैतान से भिड़ कर अपनी और दूसरी बच्चियों को बचाता है। यह फिल्म ’मां’ भी उसी पटरी पर है। इसमें भी एक शैतान जवान होती बच्चियों को उठा लेता है। पर जब वह काजोल की बेटी को उठाता है तो वह उससे भिड़ जाती है। ज़ाहिर है कि मां की शक्ति के सामने शैतान को हार माननी ही पड़ती है। ‘शैतान’ जहां गुजराती फिल्म ’वश’ का रीमेक थी और उसमें रामगोपाल वर्मा की ’कौन’ का टच था वहीं ’मां’ में काली और रक्तबीज की पौराणिक कहानी, बलि की कुप्रथा, कन्या शिशु हत्या, शापित हवेली के साथ-साथ 2024 में आज ही के दिन यानी 27 जून को रिलीज़ हुई ’कल्कि’ का भी ज़रा-सा टच है। उसमें भी शैतान को अपनी नस्ल बढाने के लिए एक ताकतवर कोख चाहिए और इस फिल्म का शैतान भी वही तलाश रहा है।

Panchayat S04
Comedy, Drama (Hindi)
रंगीले परजातंतर की रंग-बिरंगी ‘पंचायत’
Tue, June 24 2025
अमेज़न प्राइम वीडियो की सफल और लोकप्रिय वेब-सीरिज़ ‘पंचायत’ के तीसरे सीज़न में फुलेरा गांव में राजनीतिक सरगर्मियां शुरू हो गई थीं और माहौल बदलने लगा था। प्रधान जी पर गोली चली थी, रिंकी और सचिव जी की नज़दीकियां बढ़ चुकी थीं और भूषण व क्रांति देवी ने प्रधान व मंजू देवी के विरुद्ध कमर कस ली थी। ऐसे में यह तो साफ था कि इस चौथे सीज़न का फोकस राजनीति पर ही रहेगा लेकिन इस फोकस के चलते ‘पंचायत’ अपना मूल स्वाद खो बैठेगी, यह अंदेशा नहीं था। लेकिन ऐसा हुआ है और यही कारण है कि ‘पंचायत’ का यह चौथा सीज़न अच्छा तो लगता है, मगर इसे देखते हुए वह ‘मज़ा’ नहीं आता जिस ‘मज़े’ के लिए यह वेब-सीरिज़ जानी जाती है और जिसके चलते इसने हमारे दिलों पर कब्जा जमाया था। ‘पंचायत’ के पिछले तीनों सीज़न के रिव्यू में मैंने ज़िक्र किया है कि इसे लिखने वाले हर चीज़ को खींचने में लगे हुए हैं जिससे साफ लगता है कि वे लोग कई सारे सीज़न बनाने का लालच अपनी मुट्ठी में लिए बैठे हैं। बावजूद इसके यह सीरिज़ हमें पसंद आती रही है क्योंकि एक तो यह हमें ओ.टी.टी. पर मौजूद अधिकांश कहानियों से परे एक छोटे-से गांव में ले जाती है जहां की मिट्टी में अभी भी सौंधापन बचा हुआ है और दूसरे यह इस उम्मीद को कायम रखती है कि अभी सब कुछ उतना खराब नहीं हुआ है। लेकिन ‘पंचायत’ का चौथा सीज़न देखिए तो लगता है कि इसे बनाने वाले कहानी को जबरन खींच-खींच कर सुस्त रफ्तार से कहानी कहने का कोई विश्व रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं। इस बार के आठों एपिसोड में सिर्फ चुनावों की ही बात है जिससे इसमें एकरसता आई है और कुछ बहुत नया या हट के वाली सामग्री न होने के कारण बोरियत हावी रही है।

Sitaare Zameen Par
Comedy, Drama (Hindi)
मन में उजाला करते ‘सितारे ज़मीन पर’
Fri, June 20 2025
बॉस्केट बॉल टीम का फ्रस्टेटिड जूनियर कोच शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए पुलिस की गाड़ी को ठोक देता है। अदालत उसे सज़ा सुनाती है कि वह बौद्धिक रूप से अक्षम लोगों की एक बॉस्केट बॉल टीम को तीन महीने तक प्रशिक्षित करेगा। कोच भरी अदालत में पूछ बैठता है-तीन महीने तक पागलों को सिखाऊंगा मैं…? सिखाने जाता है तो वह पूछता है-मैं टीम कैसे बनाऊं, टीम तो नॉर्मल लोगों की बनती है न…? इतनी कहानी तो आपको इस फिल्म का ट्रेलर भी बता देता है। ट्रेलर तो यह भी बताता है कि इन ‘पागलों’ को कोचिंग देते हुए यह कोच अपने बाल नोच रहा है। लेकिन ट्रेलर से आगे बढ़ कर यह फिल्म दिखाती है कि ज़माना जिन्हें ‘नॉर्मल’ तक नहीं मानता वे लोग न सिर्फ हमसे कहीं ज़्यादा नॉर्मल हैं बल्कि कुछ मायने में तो बेहतर भी हैं। फिल्म यह भी बताती है कि हर किसी का अपना-अपना नॉर्मल होता है, हमें उसे पहचानने और स्वीकारने को राज़ी होना चाहिए।

Detective Sherdil
Comedy, Mystery (Hindi)
खोदा पहाड़ निकला ‘डिटेक्टिव शेरदिल’
Fri, June 20 2025
कुछ फिल्में देखने के बाद ही नहीं बल्कि देखते समय ही मन के एक कोने में ये सवाल उठने लगते हैं कि आखिर इन्हें बनाने की प्रक्रिया क्या रही होगी? कैसे इस कहानी पर किसी निर्माता को राज़ी किया गया होगा? इसके लिए पैसे कहां से जुटाए गए होंगे? बड़े कलाकारों को कैसे राज़ी किया गया होगा? इसकी शूटिंग के लिए जगह कैसे तय की गई होगी? किस तरह से एक नामी ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म को यह फिल्म दी गई होगी? वगैरह-वगैरह…! और फिर मन के दूसरे कोने से आवाज़ आती है-अरे भोले, लगता है तू भूल गया कि बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा…!!! बुल्गारिया (यह यूरोप का एक देश है) में रह रहे एक अमीर भारतीय बिज़नैसमैन का कत्ल हो जाता है। शक सीधे उसके परिवार वालों पर जाता है। ज़ाहिर है कि वह अपनी दौलत के चलते मारा गया। बुल्गारिया की पुलिस के तीन भारतीय अफसर इस केस को सुलझाने में लगे हैं। किस ने किया होगा यह कत्ल? क्यों किया होगा? क्या घर का ही कोई आदमी है या फिर…?

Housefull 5
Comedy, Crime, Mystery (Hindi)
चैनसुख और नैनसुख देती ‘हाउसफुल 5’
Fri, June 6 2025
2010 में आई सबसे पहली ‘हाउसफुल’ का रिव्यू ‘फिल्मी कलियां’ मैगज़ीन में करने के बाद मैंने इस सीरिज़ की अगली फिल्मों यानी ‘हाउसफुल 2’, ‘हाउसफुल 3’ और ‘हाउसफुल 4’ का रिव्यू नहीं किया था। दरअसल इस सीरिज़ की फिल्में जिस किस्म की मैड कॉमेडी परोसती हैं, उन्हें रिव्यू की ज़रूरत भी नहीं होती। लेकिन कॉमेडी के नाम पर रायता फैलाते-फैलाते ‘हाउसफुल 4’ ने जब कॉमेडी का कचरा किया तो मुझे लगा कि इस 5वीं वाली का रिव्यू किया जाए-इसलिए भी कि पहली बार ऐसा हुआ है जब कोई हिन्दी फिल्म ‘हाउसफुल 5ए’ और ‘हाउसफुल 5बी’ के नाम से रिलीज़ हुई है। बता दूं कि मैंने दोनों फिल्में देखीं। दोनों एक ही हैं, बस अंत के 20 मिनट में यह बदलाव किया गया है कि दोनों में कातिल अलग-अलग हैं। अरबों की दौलत का मालिक रणजीत डोबरियाल एक क्रूज़ पर अपना सौवां जन्मदिन मनाने जा रहा है। अचानक आई मौत से पहले वह वसीयत कर जाता है कि उसकी दौलत का वारिस उसका बेटा जॉली होगा। अचरज तब होता है जब शिप पर तीन-तीन जॉली अपनी-अपनी पत्नियों के साथ पहुंच जाते हैं। कौन है इनमें से असली वाला जॉली? कोई है भी या…! तभी शिप पर एक कत्ल होता है और शक इन तीनों जॉलियों और उनकी बीवियों पर आता है जिसकी जांच करने दो पुलिस वाले और उनका एक गुरु शिप पर पहुंचते हैं। वैसे शक के दायरे में शिप के स्टाफ के भी कुछ लोग हैं। किसने किया होगा यह कत्ल? और आखिर क्यों…!

Thug Life
Action, Crime, Drama (Tamil)
भव्यता से ठगती है ‘ठग लाइफ’
Fri, June 6 2025
पुलिस और गुंडों की गोलीबारी में एक शरीफ आदमी मारा गया। उसके बेटे को एक गैंग्सटर ने पाला-पोसा। गैंग्सटर जब जेल जाने लगा तो उस बच्चे को अपना वारिस बना गया। गैंग्सटर के बड़े भाई को बुरा लगा तो उसने उस बच्चे के कान भरने शुरू कर दिए। एक दिन उस गैंग्स्टर के अपने ही उसके खिलाफ हो गए। लेकिन उस गैंग्स्टर की यमराज से दोस्ती है। वह लौटा और उसने सबका बदला लिया। ऊपर बताए गए कहानी के ढांचे में पांच मुख्य बिंदु हैं-1-शरीफ आदमी की मौत, जिसके बच्चे को गैंग्स्टर ने पाला, 2-गैंग्स्टर का जेल जाना, 3-उस बच्चे को वारिस बनाना, जिससे भाई जल-भुन गया 4-उसके अपनों का उस पर हमला और 5-उसका लौट कर बदला लेना। इस फिल्म को देखिए तो इन सभी बिंदुओं की बुनियाद इस कदर कमज़ोर दिखाई देती है कि हैरानी होती है कि इस फिल्म को लिखने वालों में खुद कमल हासन और मणिरत्नम भी हैं। ज़रा-सा भी दिमाग लगाते ही इस फिल्म की लिखाई की सिलाई उधड़ने लगती है। 1-उस शरीफ आदमी का मारा जाना अचानक से ठूंसा गया लगता है, अखबार बच्चे बांट रहे थे और गोली बेवजह चली, 2-गैंग्सटर जिस अपराध के लिए जेल जा रहा था, वह साबित कैसे हुआ होगा? 3-जेल जाते समय उसने भाई की बजाय उस बच्चे को ही वारिस क्यों चुना, फिल्म नहीं दिखा पाती, 4-जहां पर गैंग्स्टर के अपनों ने उस पर हमला किया, वहां जाने का प्लान जबरन घुसेड़ा गया लगता है और 5-अंत में गैंग्स्टर उस बच्चे को एक बात बताने जाता है लेकिन बताने की बजाय वह उसे मारे ही जा रहा है, मारे ही जा रहा है, आखिर क्यों?
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